अवधी हिंदी क्षेत्र की एक उपभाषा है। मन
में आ रहा था कि क्यों न इस बार इसका एक प्रयोग अपने रचनाओं में
करूँ. बहुत दिनों की यह मन की उपज आज कुछ पढ़ने के लिए आपके सामने प्रस्तुत
है...........
जब हमरे नेता जी के परिभाषा बदलि जाई
हमरे देशवा के तब तस्वीर बदलि जाई ।
कहत हैं कि हम नेता होई, काम करक होई हमरे
खातिन
कोनो दिक्कत तुहकै होई तो थोड़ी फोन घुमावक
होई
गलत से गलत काम कई साथ एई देहिये
जेलिया में अपनें जगह कोहू अऊर के पहुंचाई
देहिये
जब हमरे नेता जी कई अधिकार समझी आयी
तबे हमरे गऊआं के बयार बदलि जाई ।
हमरें गउआ में पढ़े लें जो, वऊ मनई के काम न
करे पाई
आठ-दस पढावे के बाद, रहिया वनके बदलि दिहल जाई
स्कूलवा में बस फिसिया दिहल जाई
पढ़यिया के लिए कोचिंगया जरुर जाईल जाई
रतिया में बिजलिया कै दर्शन कहियों न पाई ।
ई सब काम होई, कही के बस नेता जी वोट बटोरी
लिहे
काम करिए के तो बाई नाही, एसे पांच साल गुजरी
जाई
जाने थे वउ की हम्मे कोहू न पूछी,
जावूने
दिन इ सब सुधर जाई
मंदिर अउर मस्जिद कए हर तरफ लड़ाई छेड़ देवे
खेतवा में कहूँ गोली बारी चली जाई ।
सिर फोडुआ के कचहरी में घर बिकवाए यही
अउर तब जज के पैसा दई के न्याय दिहल जाई
ए असलियत के वजह से देशवअ आगे बढ़त बाय
कहाँ
न जाने काहे विकासरत कही दिहल जाई
नेता जी के मोहल्ला में चोरी होई जाई जब
भईसिया के
पूलिसवन के कमवा सही रूप में तब सौंपल जाई ।
हमरें यहाँ आग लगे जब,
दमकलवा कै आवत-आवत
गऊआ जली जात हे
हर नुकसान के भरपाई हमरे,
फसलियाँ बेचे के मिली पाई
बतावा देशवा में बढ़त आबादी हमरे कोने काम
आयी ।
चुनउआ आउते ही लगत है सब कितने ईमानदार
हैं
अब देखा विदेश के कूटनीति हमरे जनता से
करत हैं
रोजगार देती हईन अईसे की बेगारी बढ़ी जाई
नेता के खातिन हम मनई के बीमारी बढ़ी जाई
दिना-रतिया काम कई के जऊं आपन पेट भरत हईं
वन्ही के नाती पोता के सरे आम मार दिहल
जाई
तो बतावा नेता जी अइसे हमार देशवा बढ़ी
कईसे पाई ।
-"प्रभात"
अच्छी अवधी- प्रस्तुति !
ReplyDeleteThanks!
Deleteबहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteनई पोस्ट : बुजुर्ग या वरिष्ठ नागरिकों की उपेक्षा क्यों ?
Thanks!
Deleteवाह !!
ReplyDeleteमंगलकामनाएं आपको !!
Thanks!
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteसादर
Shukriya!
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