हाँ शायद न समझ आये कि मैं ऐसा क्यों लिख रहा हूँ और किस सन्दर्भ में... पर मेरे दोस्त तुम्हे यह अहसास हो जायेगा जब तुम पूरी लाईनों को एक बार एक सांस में पढ़ते चले जाओगे, याद रखना कवितायेँ सोच कर लिखी नहीं जाती है यह मेरी कलम अपने आप लिख डालती है और मुझे लिखने के बाद अहसास होता है कि कोई कविता लिख उठी है ........
मुझे पता था
कि एक दिन वहां पहुंचोगे
जहाँ यकीं नहीं होगा
हम सबको
तुम्हारा साथ रहना सागर
की उस लहर जैसा था
की तुम आये और फिर
जल्दी ही चले गए
न जाने कितनी चीजों
को साथ बहाकर लाये थे ।
कुछ तरंगो जैसा प्यार
मिला और कुछ स्मृतियाँ
बहुत कुछ सीखा
ऊँची-नीची लहरों से तुम्हारे
तब समझ ना सका था, तुम्हारी बातों को
नहीं पता था कि तुम
मुझे ये सब समझा पाओगे।
तुमने छू सा लिया
मुझे अपनी यादों से
मजबूर हुआ कुछ कहने
को इन लफ्जों में
पता नहीं कब तक, मेरी
लाईनें लिखेंगी हर उन यादों को
जिसे गूथकर चले गए
उन सुन्दर धागों से
नहीं पता था मुझे तब
कि इतना कुछ कहलवाओगे ।
हाँ.. तुम अच्छा करना
वहां सब कुछ
मजबूर करना उन सबको पास
आने को,
जो तुम्हे कभी नहीं
समझ पाए थे
चलेंगे तुम्हारी राहों
पर बीते अनुभव को ले साथ सदा
भरोसा है तुम पर, आगे
इतिहास में भी पढ़ें जाओगे ।
"-प्रभात"
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति ।मेरे पोस्ट पर आप आमंश्रित हैं।!
ReplyDeleteशुक्रिया!
Deleteचलेंगे तुम्हारी राहों पर बीते अनुभव को ले साथ सदा
ReplyDeleteभरोसा है तुम पर, आगे इतिहास में भी पढ़ें जाओगे। ..........ऐसा ही हो !
सुन्दर ..
शुक्रिया!
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (13-10-2014) को "स्वप्निल गणित" (चर्चा मंच:1765) (चर्चा मंच:1758) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शुक्रिया मेरी रचना को मंच पर लाने के लिए!
Deleteबहुत सुन्दर....बधाई...
ReplyDeleteशुक्रिया!
Deleteकभी कभी
ReplyDeleteयूँ ही लिख जाता है कुछ
और अंततः एहसास होता है कि ये एक कविता है।
बिलकुल सही कहा आपने
सुन्दर रचना
जी हाँ बिलकुल सही आपने समझा............बहुत -बहुत शुक्रिया!
Deleteबहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteWaah bahut khoob likha hai... Umda prastuti !!
ReplyDeleteशुक्रिया परी जी..
Deleteमन की व्यथा को बहुत ख़ूबसूरत शब्दों में पिरोया है...
ReplyDeleteहाँ आप जो ही समझ लें ........आभार!
Delete