Friday 5 September 2014

मेरे घर के आँगन में कभी आ जाया करो ।

 

प्रेम कहानी लिख लिख कर दिन-रात सोचता आया हूँ

बस प्रियतमा तेरी चाहत में ये गजल सुनाने आया हूँ ।

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मुसकरा-मुसकरा कर जब कभी तुम आया करो
मेरी साँसों को अपनी साँसों से मिला जाया करो । 

सुबह-सुबह आईनें में मेरी तस्वीर देखना जब कभी
कुछ कह रही होंगी कहानियाँ उन पर हँस जाया करो । 

प्यार के सैलाब में न जाने कौन-कौन मिलेगा अभी
अभी मैं ही हूँ तो मुझसे नजरें न हटाया करो । 

गुजरते लम्हों में अगर मेरा ख्याल आये कभी
मेरे घर के आँगन में कभी आ जाया करो ।

सर्द-गर्म हवाओं में अगर न आना हो कभी
रात ख्वाबों में ही दिख जाया करो । 
                                          -"प्रभात"

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