अब प्यार नहीं करना ।
बहकर भावों की धारा में,
कवि बैरागी नहीं बनना
चाहत को क्यों लिखना,
देवदास ही क्यों बनना
अब प्यार नहीं करना ।
इक मूर्त बना बस पूजना,
क्यों उसे हासिल करना
दीपक की लौ के आगे,
पतंगा बन क्यों जलना
अब प्यार नहीं करना ।
अजीब सी ख्वाहिश ले,
सोते -सोते क्यों जागना
और सपनों में पीछा करते,
गले फिर से क्यों मिलना
अब प्यार नहीं करना ।
शब्दों को संजीदा से लेकर,
सोंचेंगे क्यों दिल से अब
बातों-बातों में लड़ना और
हँसते-हँसते क्यों रोना,
अब प्यार नहीं करना ।
इश्क का प्रस्ताव ले क्यों,
लव यू मन में बोलना
हृदय की गति बदलकर,
क्यों इजहार दिल की करना
अब प्यार नहीं करना । -प्रभात
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 21 अक्टूबर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत - बहुत आभार!!
Deleteबहुत-बहुत आभार
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteबहुत- बहुत धन्यवाद!!
Deleteबहुत खूब ...
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार!!
Deleteसुंदर रचना ।
ReplyDeleteबहुत- बहुत शुक्रिया!
Deleteबहुत खूब ... प्यार न करते हुए कहने के बावजूद प्रेम की हर चाह कह दी ... लाजवाब लिखा अहि ....
ReplyDeleteफासले आ गये, मुहब्बत में कैसे, जरूर इक-दूसरे से तुमने कुछ छिपाया होगा …!
ReplyDeleteवाह! बहुत सटीक बात कह दिया है आपने।
Deleteकोई शब्द जब कभी अपनेपन की स्याही लिए तेरा नाम लिखता ...बहुत ही सुंदर एहसास के साथ सुंदर कविता
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद!!
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