Sunday, 16 October 2016

थाम कर मेरा हाथ

थाम कर मेरा हाथ 
चलती रहोगी न
छोड़ जाओगी मुझे 
कभी क्या अकेला
नहीं। यही कहोगी
जानता हूँ 
कहती रहोगी न
मैं भटक जाऊं
चलते चलते कहीं
मुझे ढूंढ लोगी न
वर्षों न हो मुलाकात
तो मेरे आने का 
इंतज़ार करोगी न
मैं लिखता हूँ सब
प्यार की कलम से
तुम पढ़ती रहोगी न
भावों की बारिश में 
भीगकर हर वक्त
मुस्कुराती रहोगी न
थाम कर मेरा हाथ
चलती रहोगी न
-प्रभात
तस्वीर: गूगल से साभार

12 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 17 अक्टूबर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल सोमवार (17-10-2016) के चर्चा मंच "शरद सुंदरी का अभिनन्दन" {चर्चा अंक- 2498} पर भी होगी!
    शरदपूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. वाह बहुत सुंदर।

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  4. बहुत कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कह दिया इन शब्दों में शायद इसी को कहते हैं ... लाजवाब :)

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