थाम कर मेरा हाथ
चलती रहोगी न
चलती रहोगी न
छोड़ जाओगी मुझे
कभी क्या अकेला
कभी क्या अकेला
नहीं। यही कहोगी
जानता हूँ
कहती रहोगी न
जानता हूँ
कहती रहोगी न
मैं भटक जाऊं
चलते चलते कहीं
मुझे ढूंढ लोगी न
चलते चलते कहीं
मुझे ढूंढ लोगी न
वर्षों न हो मुलाकात
तो मेरे आने का
इंतज़ार करोगी न
तो मेरे आने का
इंतज़ार करोगी न
मैं लिखता हूँ सब
प्यार की कलम से
तुम पढ़ती रहोगी न
प्यार की कलम से
तुम पढ़ती रहोगी न
भावों की बारिश में
भीगकर हर वक्त
मुस्कुराती रहोगी न
भीगकर हर वक्त
मुस्कुराती रहोगी न
थाम कर मेरा हाथ
चलती रहोगी न
चलती रहोगी न
-प्रभात
तस्वीर: गूगल से साभार
तस्वीर: गूगल से साभार
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 17 अक्टूबर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत आभार!!
Deleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteनई पोस्ट :
फिर वही कथा कहो
धन्यवाद!!
Deleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल सोमवार (17-10-2016) के चर्चा मंच "शरद सुंदरी का अभिनन्दन" {चर्चा अंक- 2498} पर भी होगी!
ReplyDeleteशरदपूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत- बहुत आभार
Deleteवाह बहुत सुंदर।
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteसुन्दर ।
ReplyDeleteआभार
Deleteबहुत कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कह दिया इन शब्दों में शायद इसी को कहते हैं ... लाजवाब :)
ReplyDeleteधन्यवाद!!
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