कोई आभूषण हो तन में तेरी ज्योति छिन जाये
तुम हो जो
केवल मन में मेरे हौंसले बढ़ जाये
मैं सोंचू पल – पल तुझको तेरा रूप न हट पाये
ये होता है कैसे बिन देखे ही दर्शन मिल जाये
तेरी बात ही ऐसी, सोंचू तो चेहरा खिल जाये
मेरी उम्मीद और ताकत का अंदाजा लग जाये
-गूगल |
कोई
आभूषण......................................
कितनी भी हो उदास राते, स्वप्न खुशियाँ लाये
सुबह को जगने पर तेरा प्यार मिला नजर आये
कुछ पल न हो बातें साफ खामोशी दिख जाये
सोंचू मन से तो दो पल में मोती बन आसूं आये
खैर मेरी व्यथा व मेरा परिणाम, सब तुम ही हो
मेरी सफलता तब परिभाषा तुझको अर्पण हो
हरदम की खबरों में तेरा रूप विदित हो जाये
कोई
आभूषण....................................
-प्रभात
Bahut sundar rachna.
ReplyDeleteइस रचना के लिए हमारा नमन स्वीकार करें
ReplyDeleteएक बार हमारे ब्लॉग पुरानीबस्ती पर भी आकर हमें कृतार्थ करें _/\_
http://puraneebastee.blogspot.in/2015/03/pedo-ki-jaat.html
बहुत- बहुत आभार!
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (06-12-2015) को "रही अधूरी कविता मेरी" (चर्चा अंक-2182) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शुक्रिया
ReplyDeleteवाह वाह
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रिया
Deleteसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....