जिस वक्त पर मिल रहे है यह दूर अगर होता
चंद लम्हों की इन तस्वीरों में कहीं और होता
प्रेम की प्रेरणा यूँ इतनी सहज नज़र न आती
तकदीर बदल जाती और बात बिगड़ न पाती
यूँ रोशनी भी रहती और सादगी भी दिखती
नजरों में किसी पैमाने की बात उड़ न आती
पर कौन जानता है वह वक्त क्यों न आ पाया
जिस ओर रोशनी थी वहां तक जा न पाया
चला था सब कुछ छोड़ के यूँ मंजिल ढूँढने
बाकी सब कुछ पाया पर वह वक्त न आया
बीत रहा है जीवन इन्ही सपनों की उड़ान में
पथरीली राह में और दुर्गन्ध तूफानी बयार में
हौंसला है कभी यहाँ गुलफाम नज़र आएगा
जब वो नज़र आयेंगे तो संसार नज़र आएगा
अभी तो केवल “शब्द केवल” से मिल रहे है
क्या पता यहाँ दूसरा ताजमहल नज़र आएगा
-प्रभात
प्रशंसनीय
ReplyDeleteशुक्रिया
DeletePraiseworthy.
ReplyDeleteThanks!
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