हे बारिश! तुम्हें पता है कि मैं तुम्हारी राह
देख रहा था
मुझे मेरे प्यारे दोस्त के मिलने की तरह है
देखो मेरे चेहरे की रौनक
मेरे अब दुबक कर बैठने
और मेरे बाहों का अंदाज़
तुम्हारी तरल बूंदों सा उपहार मेरे हाथों पर
है
देखो कैसे वृक्ष अपने पत्ते फैला लिए
फूल अब हंसने लगे
जड़ें ऊपर से ही नजर आ गईं
जड़ें ऊपर से ही नजर आ गईं
और छाल में अब रंग पहले की तरह है
हे बारिश! हम (वृक्ष) तुम्हारे इंतज़ार में अब
तक खड़े हैं
देखो पंक्षी कहा छिपे हैं
कुछ बोल रहे हैं
कुछ गा रही हैं
और कुछ चैन से सो रहे हैं
कुछ बारिश में भीगकर आनंद ले रहे हैं
हे बारिश! तुम्हे पता है कि हमें तुम्हारे आने
की प्रतीक्षा थी
देखो खेत हमारे
धान की रोपाई और
कागज के तिकोने नाव
कैसे हैं चौराहों के चाय
हे बारिश! तुम्हे पता था कि सब तुम पर ही निर्भर हैं
तुम आये और बिना निमंत्रण के
बिना बाधा के
बिना किसी स्वार्थ के
बिना किसी बदलाव के
उसी साज और बाज से
हे बारिश! तुम्हे पता था कि हम तुम्हारे बिना
अब तक कैसे थे.....
-प्रभात
सुन्दर कविता
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुक्रिया
Deleteबहुत-बहुत आभार!
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteशुक्रिया!
DeleteVery nice post ...
ReplyDeleteWelcome to my blog on my new post.
शुक्रिया
Delete...दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
ReplyDeleteशब्द जैसे ढ़ल गये हों खुद बखुद, इस तरह कविता रची है आपने।
लगातार दिल को छू लेने वाली टिप्पणी के साथ बने रहने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया ....आभार
Deleteबहुत -बहुत शुक्रिया
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