पता है प्रेम में डूबा हूँ कैसे
जब जानोगी तो आँखे भीग जायेंगे
बारिश की पहली आगाज में
बादल भी हवा में बहना भूल जायेंगे
कहते है प्रिये समंदर की लहरे दूर तक चली आती
हैं
हमें मालूम बस चले कभी कोई बाधा
हम लहरों से भी तुम्हे खींच ले आयेंगे
तबस्सुम प्रीत में लिपटा है ऐसे
चाहकर भी कभी न भूल पायेंगे
शबनम को हवा जब चाहे गिरा दे
मगर प्रभात प्रेम में पंखुड़ियों से लिपटे पायेंगे
कहो तो प्रिये दिल से कल तुम मिलने आ रही ही
जुनून होगा मिलने का इस कदर
किसी और में भी तुम्हारी सूरत नजर आयेंगे
-प्रभात
अति सुंदर।
ReplyDeleteशुक्रिया!
Deleteप्रभात भाई!
ReplyDeleteप्रेम को सही जिया है...अद्भूत।
शुक्रिया!
Deleteप्रेम में हर किसी की रूरत एक सूरत ही नज़र आती है ...
ReplyDeleteशुक्रिया!
Deleteआभार!
ReplyDeleteबहुत उम्दा कविता
ReplyDeleteवाह
तहे दिल से शुक्रिया
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