कल्पना
करना आसान नहीं होता । बस में भोर में बैठे हुये गाँव की ओर जा रहा था । बस के आस
पास बस रास्तों के साथ पेड़-पौधे यात्रा पर थे । सुबह 5 बजे केवल आगे डिग्गी की और
बैठकर रास्तों को निहार रहा था । सुन्दर पीले-पीले सरसों के पौध खेतों में सजे
मानों मुझे बचपन की तरह छुपने के लिए बुला रहे थे । गन्ने के खेत को देखकर मेरे
दांत ठंडक से जो किट किटा रहे थे वो अब शांत हो गए थे । ओंस की बूंदों से सजी
पत्तिया यह कह रही थी की मेरी तरफ देखते रहो । श्रृंगार की अनुपम छठा मानों कुछ
पन्नों में कैद करने की ओर इशारा कर रही थी परन्तु कलम की कमी से मुझे अपने
निगाहों से ही संतोष करना पड़ा ।
मनभावन मृदुल सी आपकी भाषा हो ।
हल्की सी मुस्कान बिखेरकर लबो पर,
कोयल से भी मीठा संगीत आता हो ।
सुन्दरता देख फूल झुके आपकी ओर,
बिन गहने, परी सा लगना आता हो ।
खुशियाँ जितनी हो जीवन में हमारी,
प्रिय, बातों में बस छुपी हुयी आशा हो ।
कभी अर्थपूर्ण लगे बातों की कहानी,
तो हृदयस्पर्शी बात बनाना आता हो ।
ख्वाहिश जैसे पूरी होती रहे हमारी,
यादों पर सुन्दर राग बनाना आता हो ।
बदलते मौसम से बात करूँ जब-जब,
प्रिय, मौसमी प्यार
दिखाने आता हो ।
-"प्रभात"
बहुत सुन्दर .
ReplyDeleteनई पोस्ट : फासले कब मिटा करते हैं
नई पोस्ट : गुमशुदा बौद्ध तीर्थ
शुक्रिया!
Deleteबहुत सुन्दर ,,, भावमय प्रस्तुति ....
ReplyDeleteधन्यवाद!!
Deleteबदलते मौसम से बात करूँ जब-जब,
ReplyDeleteप्रिय, मौसमी प्यार दिखाने आता हो ।
..सुन्दर ..हृदयस्पर्शी रचना ..
बहुत-बहुत शुक्रिया!!
Deleteबदलते मौसम से बात करूँ जब-जब,
ReplyDeleteप्रिय, मौसमी प्यार दिखाने आता हो ।
......वाह प्रभात जी बेहद हृदयस्पर्शी रचना !1
नई पोस्ट ….शब्दों की मुस्कराहट पर आपका स्वागत है
आभार आपका!
Deleteआज 29/जनवरी/2015 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
शुक्रिया साभार!
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