मेरी याद का हिस्सा बनकर मत रहना,
कोई महफिल सजती है कभी बाजार में,
“तुम” होते हो मगर काफी नहीं होते।
तुम्हारा प्यार खींचता है तरफ तुम्हारे,
मेरे साथ होते हो मगर ज्यादे नहीं होते।
हर किसी को दिल में कैद करना भारी है,
हमारे शब्द बताते हैं मगर दिल नहीं मानते।
अजीब बात है हम चाहते तो है कुछ,
ख्वाब कहते हैं मगर वे सच नहीं होते।
कैसा सिलसिला
चलता जा रहा है,
उन्हें बात करना है मगर हम नहीं होते।
बताता रहा हूँ अपने दिल की हर बात,
सुन लेते हैं मगर कुछ कह नही पाते।
लपकती चिराग को हवा चाहती है बहुत,
ऐसे “प्रभात” होता हैं मगर वो नही होते।
-“प्रभात”
भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteमुकेश की याद में@जिस दिल में बसा था प्यार तेरा
शुक्रिया!
Deleteक्या बात है , शुभ रात्रि।
Deleteआभार!
Deleteकैसा सिलसिला चलता जा रहा है,
ReplyDeleteउन्हें बात करना है मगर हम नहीं होते।
लपकती चिराग को हवा चाहती है बहुत,
ऐसे “प्रभात” होता हैं मगर वो नही होते।
...बहुत सुन्दर ...दिल से निकली ..
बहुत - बहुत शुक्रिया!
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