Wednesday 13 August 2014

बस यूँ ही!


कभी-कभी मैं बिखरा-बिखरा सा होता हूँ
किसी सवाल के जवाब में सहमा-सहमा सा होता हूँ
किनारों पर पहुँचने में देर न लग जाये
इन बातों से ही थोड़ा बदला-बदला सा होता हूँ.

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कहीं जमीन मिलती है तो, किसी और को शामिल क्यों न करूँ
किसी का इंतजार व्यर्थ है तो, अपने आप को खाली क्यों न करूँ
बिन जाने कब वो आएगा, कुछ हासिल होने की बात आपसे कैसे करूँ
अगर जमाना ही न बदले तो बदले ज़माने की बात कैसे करूँ
अरमान लेकर निकले है कुछ सपनों के दिए जलाकर
गम खत्म हो जाये इससे तो, बहकी-बहकी बातें खुद से क्यों न करूँ.

                                    -"प्रभात"

-प्रभात 

10 comments:

  1. खुद पर भरोसा और अपने आप का साथ सबसे ज़रूरी है ... बहुत बढ़िया

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    1. बिलकुल सही.........मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद!

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  2. आपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 15 . 8 . 2014 दिन शुक्रवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !

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  3. गम ख़त्म हो जाये इससे तो, बहकी-बहकी बातें खुद से क्यों न करूँ...
    .......गम भूलने के लिए जाने कौन सी बात कारगर हो जाय सोच नहीं सकते हम ...
    बहुत बढ़िया प्रस्तुति

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    1. शुक्रिया! वास्तविकता है सच में ....

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  4. Replies
    1. शुक्रिया लेखिका जी!

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  5. सुन्दर बहुत बढ़िया

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