कभी-कभी मैं बिखरा-बिखरा सा होता हूँ
किसी सवाल के जवाब में सहमा-सहमा सा होता
हूँ
किनारों पर पहुँचने में देर न लग जाये
इन बातों से ही थोड़ा बदला-बदला सा होता
हूँ.
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कहीं जमीन मिलती है तो, किसी और को शामिल क्यों न
करूँ
किसी का इंतजार व्यर्थ है तो, अपने आप को खाली क्यों न
करूँ
बिन जाने कब वो आएगा, कुछ हासिल होने की बात आपसे
कैसे करूँ
अगर जमाना ही न बदले तो बदले ज़माने की बात
कैसे करूँ
अरमान लेकर निकले है कुछ सपनों के दिए
जलाकर
गम खत्म हो जाये इससे तो, बहकी-बहकी बातें खुद से
क्यों न करूँ.
-"प्रभात"
-"प्रभात"
-प्रभात |
खुद पर भरोसा और अपने आप का साथ सबसे ज़रूरी है ... बहुत बढ़िया
ReplyDeleteबिलकुल सही.........मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद!
Deleteआपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 15 . 8 . 2014 दिन शुक्रवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !
ReplyDeleteबहुत आभार!
Deleteगम ख़त्म हो जाये इससे तो, बहकी-बहकी बातें खुद से क्यों न करूँ...
ReplyDelete.......गम भूलने के लिए जाने कौन सी बात कारगर हो जाय सोच नहीं सकते हम ...
बहुत बढ़िया प्रस्तुति
शुक्रिया! वास्तविकता है सच में ....
Deletebahut sunder rachna hai..
ReplyDeleteशुक्रिया लेखिका जी!
Deleteसुन्दर बहुत बढ़िया
ReplyDeleteजी धन्यवाद!
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