Wednesday, 13 August 2014

बस यूँ ही!


कभी-कभी मैं बिखरा-बिखरा सा होता हूँ
किसी सवाल के जवाब में सहमा-सहमा सा होता हूँ
किनारों पर पहुँचने में देर न लग जाये
इन बातों से ही थोड़ा बदला-बदला सा होता हूँ.

***********************************************


कहीं जमीन मिलती है तो, किसी और को शामिल क्यों न करूँ
किसी का इंतजार व्यर्थ है तो, अपने आप को खाली क्यों न करूँ
बिन जाने कब वो आएगा, कुछ हासिल होने की बात आपसे कैसे करूँ
अगर जमाना ही न बदले तो बदले ज़माने की बात कैसे करूँ
अरमान लेकर निकले है कुछ सपनों के दिए जलाकर
गम खत्म हो जाये इससे तो, बहकी-बहकी बातें खुद से क्यों न करूँ.

                                    -"प्रभात"

-प्रभात 

10 comments:

  1. खुद पर भरोसा और अपने आप का साथ सबसे ज़रूरी है ... बहुत बढ़िया

    ReplyDelete
    Replies
    1. बिलकुल सही.........मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद!

      Delete
  2. आपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 15 . 8 . 2014 दिन शुक्रवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !

    ReplyDelete
  3. गम ख़त्म हो जाये इससे तो, बहकी-बहकी बातें खुद से क्यों न करूँ...
    .......गम भूलने के लिए जाने कौन सी बात कारगर हो जाय सोच नहीं सकते हम ...
    बहुत बढ़िया प्रस्तुति

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया! वास्तविकता है सच में ....

      Delete
  4. Replies
    1. शुक्रिया लेखिका जी!

      Delete
  5. सुन्दर बहुत बढ़िया

    ReplyDelete

अगर आपको मेरा यह लेख/रचना पसंद आया हो तो कृपया आप यहाँ टिप्पणी स्वरुप अपनी बात हम तक जरुर पहुंचाए. आपके पास कोई सुझाव हो तो उसका भी स्वागत है. आपका सदा आभारी रहूँगा!