Friday, 1 August 2014

रिश्तों की बुनियाद पुरानी हो न हो!

रिश्तों की बुनियाद पुरानी हो न हो
यादों की बुनियाद डालनी इनसे सीखो

महफिल में अपना कोई हो न हो
बातों से अपना बनाना इनसे सीखो

फूलों का गुलदस्ता हाथों में हो न हो
प्यार जताना इनसे सीखो

######सर कहाँ है?  आ जाइए डेरे पे हैं।  प्रसिद्ध डेरा ५३ (एस) ग्वायर हाल, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली का हुआ करता था.
सर अभी नहीं आ पाएंगे थोड़ी समस्या है.
कहिये क्या हुआ.. यही साथे में लंच कर लीजियेगा
अरे नहीं जाम लग गया है. बस में हूँ टाईम लग जाएगा
सो बात तो है! कोई बात नहीं रखवा देता हूँ
नहीं सर। … क्या नहीं कुछ दिन ही तो बचे हैं फिर तो हम परदेशी हो जायेंगे
अच्छा सर आते हैं शाम तक
आईये-आईये वेलकम!……………………।
इन यादों की पुरानी डायरी भले ही मैं फिर से पढ़ लूँ पर यहाँ मिलने वाला हर कोई यह पढ़ कर शायद समझ जाए कि मैं किस जनाब की बात कर रहा हूँ..... श्री राम एकवाल सिंह (असोसिएट प्रोफेसर) की जो हमारे देश से मधुर सम्बन्ध रखने वाले नेपाल देश से ताल्लुक रखते हैं......
आईये हम कुछ फोटो पर भी नजर डाल लेते हैं.......


17 comments:

  1. बढ़िया लेखन

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  2. सुंदर प्रस्तुति ,

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  3. बहुत रोचक प्रस्तुति...

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  4. बहुत सुन्दर आत्मीय लेखन ...
    यादों का सुन्दर गुलदस्ता

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  5. सुन्दर और आत्मीयत भरा लेखन ...
    फुर्सत मिले तो .शब्दों की मुस्कुराहट पर आकर नई पोस्ट जरूर पढ़े....धन्यवाद :)

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  6. भावनाओं से भरा पात्र ... रिश्ते बने रहना चाहियें ...

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

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  8. बेहद उम्दा प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
    नयी पोस्ट@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ
    रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनायें....

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    1. शुक्रिया यहाँ पधारने के लिए...नयी पोस्ट बहुत ही अच्छा लगा पढ़कर और सुनकर जब आपके ही स्वर और भावनाओं का मिला जुला स्वरुप सामने हो....आभार!

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