Thursday 9 August 2018

सावनः गुड़िया पीटना

इस तरह बारिश में भीगते हुए मैंने देखा था अपने आपको बस एक बार, बहुत छोटा बच्चा था, एक-एक बूँद भी पड़े तो समझो मेरे हाथों में सिहरन सी होने लगती। लगता कोई हवा चल रही हो और वो अंदर प्रवेश करके सीधे मस्तिष्क तक पहुंच गई हो। हम कागज की नाव बना कर आंगन में भरे लबालब पानी में पौड़ाने के लिए तैयार रहते। मन करता था तो चम्पक की कहानियों में बंदर मामा और छोटी बिल्ली की तस्वीरें देखते जो भींगते रहते और छाता लेकर खड़े होते थे। इससे जब मन नहीं भरता तो पंचतंत्र की कहानियां पढ़ लेते जिसमें सियार और गधों की कहानियां मानों पता नहीं कितने तरीकों से तस्वीर बना देती थीं।
इसके बाद ही जब जुलाई में बारिश तेज होती थी तो दादी जी गुड़िया बनाने लगतीं। सूती कपड़े और कपड़ों से लपेट कर हल्दी में भिगोकर जब गुड़िया तैयार होती थी तो लगता था आज के इलेक्ट्रॉनिक गुड्डे उसकी तुलना में कुछ भी नहीं हैं। हम दोपहर में अपने अपने लिए एक छोटा से पौधे का तना काट ले आते थे। जो छोटे और पतले डण्डे की भांति होता था। इस डंडे को सुखाने से पहले छीलकर उसके त्वचा को बीच बीच से हटाकर डिजाइन तैयार करते थे और जरूरत पड़ने पर रंग से रंग दिए जाते थे। लड़की यानी दीदी गुड़िया हाथ मे लेती थीं। दादी कटोरे में चना और मटर भिगोया हुआ लेकर और हम भाई डंडा लेकर चल पड़ते थे जलाशयों की ओर। बारिश के मौसम में चारों तरफ पानी और उसमें बैठे मेंढक की टर्र टर्र की आवाज एक के बाद एक ध्वनि प्रदूषण के जैसे मगर बहुत सुकून देते थे। कसहरी यानी मूजा/ नुकीले सरकंडे वाले घास के बीच से सरसराती हवा और नीचे से घटघट और टकराती पानी की आवाज बहुत ही आहिस्ता से दिल के कोने में जा टकराते थे। तालाब में नहीं पहुँच पाते क्योंकि तालाब उन दिनों भर जाता था। गड्ढा/ गड़हा में पानी भरा रहता और वही पर गुड़ियाँ को ते
तैरा दिया जाता। और हमें संकेत मिलते ही हम उन्हें डुबोने के लिए पानी में अपने अपने डंडे से खुद छपकिया मारते, तब तक जब तक गुड़ियाँ डूब नहीं जाती थीं। इसके बाद गाना जिसे कजरी कहते हैं, गाते हुए घर वापसी में चना और मटर जो कच्चा और भिगोया होता था, नमक के स्वाद के साथ खाकर खुद को इतना आनंद लेते इसके बाद कभी नही पाया।
फिर अब बारिश में घर से बाहर निकलना यानी यादों को बटोरना ही है। सौंधी मिट्टी को सूंघना और उन मीठे पानी को दिल तक ले जाना केवल अहसास करके खुद को समझाना ही है।
ये सावन का आना, नागपंचमी और गुड़िया सेरवाना कभी नहीं भूलेगा।
तस्वीर: गूगल साभार, सांकेतिक


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