अरे भाई गाली देने से पहचान होती है?
बचपन से आज तक किसी को गालियां नहीं दी। किसी को साला तक नहीं कहा।
शब्द निकलते ही नहीं मानो। हां बचपन में हम भाई बहन कुत्ता और कुत्ती शब्द का
इस्तेमाल जरूर कर लेते थे। गालियां देता नहीं था लेकिन जब किसी के द्वारा मुझे
गालियां मिलती थी, तो ग्रेजुएशन तक तो ये हाल था कि सीरियसली लेकर
भावुक हो जाता था। कभी-कभी तो चिल्ला देता था। किसी ने हल्का सा डाँटा तो लगता था
कि अपराध बिना ही ये डांट क्यों दी गई क्या वह नहीं जानता कि मैं सबसे अलग हूँ।
रैगिंग में गालियां देने को कही गईं तो आँसू निकल आए, सब कुछ किया लेकिन गालियां मुँह से निकले
नही। इन सबके लिए मेरे घर का आदर्श वाला माहौल और बचपन में पढ़ी नैतिक शिक्षा की
कहानियां, बुद्ध की जीवनी आदि जिम्मेवार हैं।
बात ये नहीं है कि मैं गालियां नही देता, बात ये है कि एक लड़का गाली नहीं देता। रोना तो कहा जाता है स्त्रियों के
लक्षण हैं और पुरुष तो कभी रोते नही वे कठोर होते हैं। ऐसा अगर होता है तो मेरे
जेंडर पर प्रश्नचिह्न लग जाता है। इतना नरम दिल के पुरुष को आप देख के कह देंगे कि
कठोर बनिये। जो हूँ उससे बहुत लोगों को एतराज होगा। भाई सिंपल सी बात है लड़का होने
का मतलब ये नही कि इमोशन्स उसके पास नही होंगे। किसी में कम होते है तो किसी में
ज्यादा। लड़की होने का भी मतलब ये नही कि वह बहुत सॉफ्ट ही होगी वह परिवेश के हिसाब
से कम इमोशन्स को धारण कर सकती है।
इन सबके बावजूद ये लॉजिक नहीं समझ आया कि गालियां किसी का
व्यक्तित्व तय कैसे करती हैं? आज कल गालियां देने वाले
लोग बड़ी सोसाइटी के होने का दावा करते है। गालियां और शराब का बहुत बड़ा लिंक है।
और इसमें अगर सेक्स जुड़ जाए तो समझिए कॉकटेल जो बना वह बहुत ही स्टैण्डर्ड क्लास
का हुआ। लड़कियां गाली देकर पुरुषों के जैसा बनना चाहती हैं। सिगरेट का नशा करके
मानों वे कॉकटेल बना रही हैं स्टैण्डर्ड होने का। आखिर क्या पुरुषों के पहचान
गालियों से तय होते हैं, उन चीजों से ही बराबरी करना है आपको
भी जिन चीजों में अश्लीलता हो। जो न तो पुरुष का कॉपीराईट हो न ही महिलाओं का ।
इसका अगर समाजीकरण भी हुआ है तो समाज के सबसे स्टैण्डर्ड क्लास के लोगों द्वारा ही
हुआ है, जो अंदर से खोखले ही हैं। जिंदगी में यही समाज के
लोग अपनी हैसियत दिखाते है और महिला और पुरुष होने का प्रमाण देते हैं। बात बस
इतनी सी है कि गालियां दो, खूब दो लेकिन इसको ग्रहण न करने
वाला मनुष्य ज्यादा खुश दिखेगा। चेहरे पर चिड़चिड़ापन उसके नही होगा। गालियां मैं
नही लेता और न ही देता हूँ तो क्या अब तक का जीवन मेरा गालियों के बिना अधूरा रहा?
बल्कि मैं शब्दों का बाड़ चलाना सीख गया हूँ कि गालियां देने वाले
अक्सर माफी मांग लेते है, गालियां न देने से मेरे शब्दकोश
में इतनी बढ़ोत्तरी हुई कि जिससे मैं इन स्टैण्डर्ड क्लास के लोगों को कभी भी मात
दे सकता हूँ।
इसलिए नारी या पुरुष दोनों को वही लक्षण अपनाने चाहिए जो उनकी
पहचान कराये, मगर जो वास्तव में स्टैण्डर्ड क्लास से लगते हो।
आदर्श बन कर जीयें और ऐसा ही गुण अपने बच्चों में भी लाएं। गालियाँ कुछ नही बस
गंदी मानसिकता को दर्शाती हैं । यह न तो पुरुष का गुण है और न ही महिला का।
-प्रभात
तस्वीर गूगल साभार
-प्रभात
तस्वीर गूगल साभार
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