जरा
मुझे भी सुनिए, हम नहीं कहते
हम असल में किसी से कुछ नहीं कहते
जिंदगी ने गम दिया तो भी सुकून है
हर कदम पर मजबूरियां है, नहीं कहते
हम असल में किसी से कुछ नहीं कहते
जिंदगी ने गम दिया तो भी सुकून है
हर कदम पर मजबूरियां है, नहीं कहते
बात हो रही है आपकी सरकार!! हम तो क्या हैं, इंसान.....न....शैतान........न.......तो फिर मेरे रिक्शे पर बैठी साहिबा
की ......शब्द भइया...... न.....मैं असल में इज्जतदार कभी रहा ही नहीं। परिश्रम
करते करते जिंदगी ने मुझे शाम के खाने के लिए गुटका दिया, वो
भी लोकल.....भाड़े से देशी दारू कभी कभार.......और इस हड्डी को मजबूत करने के लिए
.........लाल मिर्च वाला खाना, जो काले पानी में पकाया जाता
है। ये तो रही खाने की बात और इज्जत की बात।
अब देखने और समझने की बात यह है.....
रात को रहने के लिए फुटपाथ की जगह (जिसे सफेद कुर्ते वाले अक्सर मेरे कर्म का नतीजा करार देते हैं) है....जहाँ से झनझनाते ट्रक की बयार, टायरों की रगड़ और उसमें पिसते आम लोगों की संवेदनाओं के बीच मेरी जिंदगी ।
हां मेरी जिंदगी......
जो असल में है तो दिखने में है तो बहुत बेकार
लेकिन अंदर से बहुत अच्छी भी है....
नींद आ जाती है बिना दवा लिए.....बिना पंखे के......बिना सोफे के .......बिना तकिये के....
बिना घर वाली के........बिना जिंदगी के।
रात को रहने के लिए फुटपाथ की जगह (जिसे सफेद कुर्ते वाले अक्सर मेरे कर्म का नतीजा करार देते हैं) है....जहाँ से झनझनाते ट्रक की बयार, टायरों की रगड़ और उसमें पिसते आम लोगों की संवेदनाओं के बीच मेरी जिंदगी ।
हां मेरी जिंदगी......
जो असल में है तो दिखने में है तो बहुत बेकार
लेकिन अंदर से बहुत अच्छी भी है....
नींद आ जाती है बिना दवा लिए.....बिना पंखे के......बिना सोफे के .......बिना तकिये के....
बिना घर वाली के........बिना जिंदगी के।
अब पहनावे की बात भी सुन ही लीजिए...
नहीं नहाता ऐसा नहीं है, डेली नहाता हूँ, धूल से पसीने से और कभी कभार खून से ।
लेकिन शाम को अक्सर काली यमुना के किनारे बिन साबुन लिए 5 रुपये देकर शौचालय में जानी की आदत है.....कभी कभार पेनाल्टी के रूप में मेरी आधी कमाई वर्दी को चली जाती है.......गिड़गिड़ाहट में मेरे तन पर पड़े वो फटी कमीज का टुकड़ा भी फटकर रुमाल बन जाता है। दाढ़ी बढ़ जाती है तो पागल की तरह रोड पर चलते हुए मुझे एक रुपये की भीख किसी भक्त से मिल जाती है जो अक्सर चढ़ावे में हजार रुपये से कम मंदिरों में चढाना अपराध समझते है।
तो अब तो समझ गए होंगे मनुष्य के लिए 3 चीजें कौन सी जरूरत की चाहिए....खाना, रहना, पहनना
और ये तीनों ही से वंचित हम मनुष्य नहीं है.....इसलिए हम कुछ नहीं कहते केवल फुटपाथ पर रात को सोते हुए आसमां का एक चक्कर जरूर लगा लेते हैं..
नहीं नहाता ऐसा नहीं है, डेली नहाता हूँ, धूल से पसीने से और कभी कभार खून से ।
लेकिन शाम को अक्सर काली यमुना के किनारे बिन साबुन लिए 5 रुपये देकर शौचालय में जानी की आदत है.....कभी कभार पेनाल्टी के रूप में मेरी आधी कमाई वर्दी को चली जाती है.......गिड़गिड़ाहट में मेरे तन पर पड़े वो फटी कमीज का टुकड़ा भी फटकर रुमाल बन जाता है। दाढ़ी बढ़ जाती है तो पागल की तरह रोड पर चलते हुए मुझे एक रुपये की भीख किसी भक्त से मिल जाती है जो अक्सर चढ़ावे में हजार रुपये से कम मंदिरों में चढाना अपराध समझते है।
तो अब तो समझ गए होंगे मनुष्य के लिए 3 चीजें कौन सी जरूरत की चाहिए....खाना, रहना, पहनना
और ये तीनों ही से वंचित हम मनुष्य नहीं है.....इसलिए हम कुछ नहीं कहते केवल फुटपाथ पर रात को सोते हुए आसमां का एक चक्कर जरूर लगा लेते हैं..
फोटोग्राफी: प्रभात (कूड़े वाली)
फुटपाथ (गूगल)
-प्रभात
फुटपाथ (गूगल)
-प्रभात
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (20-09-2017) को बहस माता-पिता गुरु से, नहीं करता कभी रविकर : चर्चामंच 2733 पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'