Friday, 2 June 2017

घर ही तो आओगे

घूम लो गाँव, खेत खलिहान....
लौट कर घर ही तो आओगे
शहर के चकाचौध में रह लो....
जुगनूं से मिलने तो आओगे
पंखे, एसी का आराम ले लो....
एक दिन सड़क पर आओगे
पेड़ो की शाखाएं तोड़ डालो....
चिता पर लकड़ी न पाओगे
अवरोध रास्तों पर तो होंगे ही....
रोज चलोगे तो सुकून पाओगे
पोखरे को पाटके नींव रख ली....
अब गारे का पानी न पाओगे
जिंदगी में जो भी कुछ मिला....
संतोष करो तो खुशी पाओगे
घूम लो गाँव, खेत खलिहान....
लौट कर घर ही तो आओगे
-प्रभात

तस्वीर: गूगल आभार

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (04-06-2017) को
    "प्रश्न खड़ा लाचार" (चर्चा अंक-2640)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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