मैला
हुआ वो पानी दरिया का, सूरज भी जैसे रुका हुआ है
जाड़ा, गर्मी बरसात लिए अब मौसम कितना बदला हुआ
है
घास पर फ़ैली ओंस की बूंदों में चिमनी का रंग
घुला हुआ है
वर्षों हो गये सुने कोयल की कूकू को कैसे कहाँ
छिपा हुआ है
न जाने किस किस मौसम की अगुवाई में बादल चला
हुआ है
बालक हूँ इतना नादान कौवा और
कोयल न समझूँ
रात की रोशनी में अब चांदनी और अधियारी रात न
बूझूं
एकादशी की रात अनोखी गन्ने की कीमत न समझूँ
सूंप दीवारों पर टंगी हुयी मंकड़ी के जालों में
उलझू
मेढ़क की आवाज वाले खिलौने बाजारों में भी नहीं
सुनूँ
बचपन ही अच्छा था तब का अब मैं कहाँ चला हुआ
हूँ
लौटा दो वो प्यारे बचपन के खेल यादों में खोया
हुआ हूँ
-प्रभात
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 29 फरवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " "सठ सन विनय कुटिल सन प्रीती...." " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत आभार!
Deleteबहुत आभार!
ReplyDeleteबचपन से अच्छा क्या है ? बहुत सुंदर पंक्तियाँ हैं
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया आपके उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए!
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया
Delete''यादों में खोया हुआ हूं'' बहुत ही उत्कृष्ट रचना की प्रस्तुति। मेरे ब्लाग पर नई पोस्ट को आपका इंतजार है।
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया
Deleteबेहतरीन अभिव्यक्ति.....बहुत बहुत बधाई.....
ReplyDeleteबहुत दिनो बाद आपको यहाॅ देखकर प्रसन्नता हुयी।
Deleteधन्यवाद
बहुत अच्छे whatsapp awesome
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteबेहतरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteacchi abhivyakti hai prabhat ji......keep it up
ReplyDeleteNice information
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