अपने देश को हम झुकते नहीं देखेंगे
कुर्बानी शहीदों की हम खोते नहीं देखेंगे
जिसने कहा है हमें देशद्रोही
उसे देशवासी नहीं उसे राजनेता ही समझेंगे
इनको कहाँ आता है राष्ट्रवाद की परिभाषा
इन्हें है अपना राज पाने को लेकर आशा
जहाँ देखेंगे वहां भारत-पाक बनाते देखेंगे
इस भीड़ में सांडर्स की पहचान भी नहीं होगी
किसी अधिकारी की अपनी जुबान भी नहीं होगी
मोहल्ले में एक दिन तिरंगा लगाते हुए भी
देखेंगे
भीड़ बुलाकर जलियावाला बाग़ बनाते भी देखेंगे
कौन सा तूफ़ान किसी निर्धन को मौत नहीं देता
आसुंओं को गरीब नेता सूखने क्यों नहीं देता
खरीदनें और बांटने में हम पर ही सब्सिडी
दिखायेंगे
इंसान को इंसानियत से मानव बम बनाते देखेंगे
मौत के रहस्य को मौत से सुलझाते देखेंगे
देश को सुधारने की आवाज उठाने वालों से पूछो
सीमा पर डटे मौत के पास जाने वालों से पूछो
तिरंगा ही उठकर जब शव के पास आता है
उसे प्यार देने वाली गुजरती हवा से पूछो
देश को भी उसके सामने झुकते देखेंगे
हर माँ की आँखों के आसूं उस संतान के लिए
होंगे
-प्रभात
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (21-02-2016) को "किन लोगों पर भरोसा करें" (चर्चा अंक-2259) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका बहुत-बहुत आभारी हूँ!
Deleteअति उत्तम भावाभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteशुक्रिया पधारने के लिए!
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद !
Deleteसार्थक व प्रशंसनीय रचना...
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है।
तहे दिल से धन्यवाद!
Deleteबहुत बेहतरीन रचना. मेरी ब्लाग पर आपका स्वागत है.
ReplyDeleteतहे दिल से धन्यवाद!
Deleteगहरी और आपकी शैली के अनुरूप ... जबरदस्त कटाक्ष है तथाकथित नेताओं पे तो देश प्रेम के अर्थ का ही अनर्थ करते पे तुले हैं ...
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया ..
Deleteजबरदस्त कटाक्ष
ReplyDeleteशुक्रिया आपको
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