Thursday, 3 November 2016

एक पत्रकार के साथ पीरा बैल और रोती गाय

नमस्कार पीरा जी और रोती जी। मैं प्रभात आपके साथ अगले 1 घंटे के लिए हूँ। आप दोनों का हमारे खेत के मचान के पास स्वागत है।
पीरा और रोती: जी प्रभात जी आपको भी नमस्कार। ; पूँछ हिलाते हुए और जीभ बाहर निकालकर नाक की और ले जाते हुए अम्मा!
प्रभात: ये अम्मा क्यों?
रोती जी: ये अम्मी की याद में अचानक ही निकल गया । मैं जब छोटी थी तो मुझे मेरे अम्मी से अलग कर दिया गया। मैं कसाई के हाथों में चली गयी थी। बड़ी मुश्किल से भाग गई एक दिन जब मुझे घुटे से जमके बाँधा गया था तो कुत्ता दोस्त ने रस्सी काट दिया और छूट के भाग गई थी, तब भी अम्मी का पता नहीं चल पाया।
प्रभात: अच्छा रोती जी आपके दोस्त पीरा जी आपको कब और कैसे मिले।
रोती जी: जब हौदी में अपने मालिक के यहाँ संगहा/भूसा खा रहा था, मेरी बूढ़ी अम्मी भी साथ में खाना खा रही थी वो दूध देती थी तो उन्हें मालिक ने आँगन में बाँधा था। और मैं जवान थी परंतु दूध नहीं देती थी बाहर बाँध रखा था। वही पीरा जी आते थे और मेरे साथ कुछ समय बिता लेते थे। जब तक पीरा जी के लिए सोंचती क़ि रूक जाए तब तक मालिक डंडा लेकर आते और पीरा जी को तब तक मारते जब तक पीरा जैसे सांड/ बैलों के संमूह में वह नहीं भाग जाता।
प्रभात: अच्छा पीरा जी आपसे एक सवाल। आप छुट्टा कब से घूमते है?
पीरा जी: मैं ये नहीं जानता पर जब से होंस संभाला, तब से ही मुझे हमारे मालिक ने नाक में नाथकर, मेरे शरीर पर कई जगह दागकर घर निकाला कर दिया गया था, क्योंकि मैं उनके किसी काम का था ही नहीं, नसबंदी होता इससे पहले ही घर परिवार छोड़कर रफूचक्कर हो गया। बाद में हम समूह में चलने लगे, पहले खेतों की ओर गए, मारे गए। भाले से अधमरा हो गया तब जाकर फुटपाथ पर शहर में घूमने आ गया। इसलिए शहर में आप से भी आज ही मुलाकात हो सकी।
प्रभात: डकारते हुए आपके साथ और जो लोग है वो दूर क्यों खड़े है?
पीरा जी: मेरे साथी दल में सभी मेरा स्वागत करने के लिए 1/2 किलोमीटर दूर खड़े है वो बता रहे है कि हम सब साथ है।
प्रभात: आप लोग क्या खाते है और कैसे दिन बीतता है?
रोती जी: हम सब पानी की खोज में बहुत दूर दूर तक चलते जाते है शहर में नाले का पानी मिल पाता है। खाने के लिए सड़ी गली खाने जैसा कुछ भी जो मिलता है वही निगलना पड़ता है। कभी- कभी प्लास्टिक भी खा लेते है।
पीरा जी: पागुल करते हुए, हाँ में हाँ मिलाते हुए। 
प्रभात: आपको खूंटे में बंधा हुआ अच्छा लगता है या छुट्टा!रोती जी: जी मुझे खूंटे में बंधा हुआ अच्छा लगता है कम से कम मालिक दूध के बहाने मुझे खिलाता पिलाता तो रहता है। यहाँ तो छुट्टा हूँ पर घूमने और खाने की स्वतंत्रता कहाँ?
पीरा जी: बहुत चोट खाना पड़ता है, जिधर जिस किसी के दरवाजे पर जाता हूँ वही दुत्कार दिया जाता हूँ। डंडे हो या भाले सब सह्वे पड़ते है। भागता तो रहता हूँ। मालिक तो मुझे खूंटे से अलग बचपन में ही कर देता है। खूंटे ही क्यों पूरे घर से अलग। घर ही क्यों पूरे परिवार से अलग।
प्रभात: तो अब आप लोग कहाँ जाने वाले है आप थके होंगे रिफ्रेशमेंट में आप लोग क्या लेना चाहेंगे।
पीरा और रोती जी दोनों एक साथ सिर ऊपर नीचे करते हुए, हंसमुख चेहरे से पत्रकार के हांथों को चूमने लगते है। मानों अब वे कह रहे हो मेरी पीड़ा को समझने और बात करने वाला ही मेरे रिफ्रेश होने के लिए काफी है। फिर भी आज जब उन्हें धुयिहर के साथ और खलिहान में हरे चारे के सामने बैठे मैंने देखा तो लगा शायद वो अपने पिछले दिनों को याद कर रहे है।
मैं उन्हें इस तरह साथ बैठा देखकर थोड़ा मुस्कुराता हूँ और दोनों हाथ जोड़कर शुक्रिया भी अदा करता हूँ।
-प्रभात



1 comment:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "ह्यूमन कंप्यूटर' = भारतीय गणितज्ञ स्व॰ शकुंतला देवी जी “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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