Tuesday 3 April 2018

अंदाज ए बयां


सुनो,अगर इस जहाँ में मेरी चाहत की कद्र न हुई, तो मुझे जो चाहते हैं उनकी हिफाजत न होगी
------------------------------------------------------------------
"शिकायत ये नहीं कि तुम हो नहीं अब बस दर्द ये तो पुराना हो गया।
रिश्ते नाते सब छूट गए ही हैं, फासलों का क्या सब बढ़ना बढ़ाना हो गया।
अब गुजर रहा जमाना बस तुम से बिछुड़कर तो पहचाने कौन मुझे उस तरह से
गले लगकर मिले थे जो, अब उसको चाहे भी अरसा पुराना हो गया।
तन्हाइयों का सिलसिला तो बस यूँ ही गुजर जाए तो बात भी क्या होगी
जब तुम्हें देखे बिना मुस्करायें या रोयें तो समझो दर्द भी पुराना हो गया।
-प्रभात
ये गजल भी सुनते जाइये:
https://youtu.be/4EE_ebfaOlI
Songs - Jagjit and Chitra
तू नहीं तो ज़िन्दगी मैं और क्या रह जायेगा
दूर तक तन्हाइयों का सिलसिला रह जायेगा
दर्द की सरी तहें और सारे गुज़रे हादसे
सब धुआँ हो जायेंगे एक वाक़िया रह जायेगा
यूँ भी होगा वो मुझे दिल से भुला देगा मगर
ये भी होगा खुद उसी में इक ख़ला रह जायेगा
(ख़ला = अकेलापन)
दायरे इन्कार के इक़रार की सरगोशियाँ
ये अगर टूटे कभी तो फ़ासला रह जायेगा
(सरगोशियां- कानाफूसी)
---------------------------------------
-गूगल साभार 

सुनो मेरे ब्रेन में कुछ हो गया है
उन्होंने पूछा: क्या?
मैंने एक रेयर सिंड्रोम का नाम बताया
उन्होंने कहा: कि मुझे पता था तुम ज्यादा सोचते हो, एक काम करो ये जो कविताएं वगैरह लिखते हो न, इसे बंद कर दो। ज्यादा न सोचा करो प्लीज मेरे लिए.....(बहुत क्युट रिप्लाई)
मैं विज्ञान का थोड़ा बहुत जानकार तो हूँ ही, लगा कि हाँ लैमार्क साहब की आत्मा काश जिंदा होती अब भी, वही तो बताए थे न जिस चीज का ज्यादा प्रयोग करोगे उसमें वृद्धि हो जाएगी। मैंने यही तो किया दिमाग का इस्तेमाल ....अब हँस भी लो
जिराफ देखो कूद-कूद के बढ़ गया है.....
---------------------------------------


मैंने देखा तेज चिल्लाने पर लोग सुनते हैं
यही संबंध है मीडिया और मौत में
----------------------------------------
हाँ मैं चाहता हूं, मेरी कविताओं का कत्ल हो जाये
ताकि अखबारी हो जाऊं मैं...
#प्रभात

No comments:

Post a Comment

अगर आपको मेरा यह लेख/रचना पसंद आया हो तो कृपया आप यहाँ टिप्पणी स्वरुप अपनी बात हम तक जरुर पहुंचाए. आपके पास कोई सुझाव हो तो उसका भी स्वागत है. आपका सदा आभारी रहूँगा!