बबल गेम
-गूगल से साभार |
तस्वीरों में सिमटी
नदियां भी कहल- कहल कर आज काले-काले से होने लगे हैं,
कांच के बने शीतल-शीतल महल भी टूट-टूट कर बिखरने लगे हैं।
कबूतर
के कटोरे-कटोरे के जल के बूँद-बूँद को सूरज भी ऐसे पीने लगे हैं,
और इतनी त्रासदी में निकला कुए और टंकी का बूँद भी ज्ञान-विज्ञान
में उलझ-उलझ कर खोने लगे हैं।
गलियों के कुत्ते और
हांफ-हांफ के पत्तों-पत्तों से पानी निचोड़ने लगे है,
किसानों के फसल में खड़ी गरीब-गरीब की आत्मा भी झुलस-झुलस कर दम
तोड़ने लगे हैं।
ऐसे
प्रसंग के बीच स्मार्ट-स्मार्ट मनुष्य सब भूल-भूल मोबाइल में बबल गेम खेलने लगे
हैं।
-प्रभात
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