हवा को ताकत दे बहने की तो मुझे
रोकने की,
वरना हम यूँ ही साथ-साथ बह जाएंगे
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कुछ इस तरह प्यार करके मैं टूटा हूँ
तुम्हें संभालने की जिम्मेदारी थी मगर
खुद संभल जाऊं पहले यही सीखा हूँ।
कुर्बानियां दी हैं जो मैंने भावनाओं की
तुम्हारी कद्र ही न करूं यही चाहता हूँ।
खुश रखूंगा उन्हें, विश्वास था इतना मुझे
लेकिन उन्हें खामखाँ लगा कि मैं झूठा हूँ
मंजिल को पाने को बेताब था बहुत तब
अब बेपरवाह जहां हूँ वहीं, खुश बैठा हूँ
नोट: ये सब बहाना है, जिंदगी
में किसी को न लाना है। चाय पीकर काम चलाना है, बीयर-व्हिस्की
को दूर भगाना है। कृपया सीरियस न लें जनाब ऐसे टाइम पास करने फेसबुक पर आना है।
-प्रभात
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (05-12-2018) को "बीता कौन, वर्ष या तुम" (चर्चा अंक-3176) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी