Monday 1 July 2019

मेरा लिखना, लिखना क्या अगर वह विवादित नहीं


मेरा लिखना, लिखना क्या अगर वह विवादित नहीं
सूरज को सूरज और चांद को चांद तो सब कहते हैं
अगर मैं सूरज को चांद न कहूँ तो इनको परिभाषित कौन करे

अगर मैं तुम्हारी तरह हाँ में हाँ मिलाकर उनसे कुछ न बोलूं
जिनके भक्त बन जाते हैं और अनुयायी पैमाने पर चलते हैं
तो मैं भी भक्त ही कहलाऊंगा, किसी और की भक्ति कैसे होगी

छुपना और सहना तो जीवन को चलाना है जैसे मौसमों का आना
मगर इनका बदलना न हो तो कैसे होगा सिद्ध की तुम भी जीवित हो
अगर हर कोई केवल नींद ही ले तो जागने वाला कैसे चिन्हित हो

मेरा कुछ भी कह देना हो सकता है हंसी का कारण बन जाए
मेरा आगे आना हो सकता है कुछ खोने का कारण बन जाए
लेकिन यह विमर्श बन जाए तो हो सकता है कोई प्रभात बन जाए

-प्रभात
तस्वीर-प्रतीकात्मक

उड़ उड़ कर गिरने से अच्छी कोई बात नहीं होती


उड़ उड़ कर गिरने से अच्छी कोई बात नहीं होती
बच्चे को गौरैया बनने में पूरी दिन रात न होती



मकान बने हैं बहुत यहां कोई रास नहीं आता
बस धरती पर जगह और खुला आसमां मिल जाता
तीखे कड़वे संवाद में रोना धोना चलता है
कर्कश आवाजों के साये में चुप रहना ही पड़ता है
बनी राह पर चलने से अच्छा कहीं पर रुक जाना है
राहों में राह बनाने से अच्छी कोई बात नहीं होती
बच्चे को गौरैया बनने में पूरी दिन रात न होती

-प्रभात

जब कोई पूछता है कहाँ गए वो


जब कोई पूछता है कहाँ गए वो.....? (1 के बाद 1 फिर भी मैं 1)


राह में पत्थर है मगर मालूम है मेरा बहना उसे
मैं नदी की तरह हूँ और मुझे रहना है वैसे

हौसलों को जगाकर बड़ी दूर तक चला आया
राह में मिलने वाले रोड़ों को छोड़ आया
थीं मुसीबतें बहुत जब रोकने की वजह बन गए वो
लेकिन बढ़ने के लिए आगे कुछ सीखा गए वो
मैं सीखते रहता हूँ और मुझे रहना है वैसे

तकदीर में वो नहीं शायद मेरे, ये भी जरूरी था
किसी का छोड़ कर मुझे जाना जरूरी था
तख्त पर सोने में वो आराम कहाँ है
मैं जमीन से जुड़ा हूँ और मुझे रहना है वैसे

मिलने की चाहत थी शुरू में चांद से हम दोनों की
गिले शिकवे बहुत थे मगर उम्मीदें थीं साथ रहने की
जब पहुंचने की बारी आई आसमां में हमको
टूट गई यारी और यार हौंसलों की
मगर मैं अकेले काफी हूँ और मुझे रहना है वैसे

-प्रभात

मैं तुमको बेवफा क्यों नहीं कहता



मैं तुमको बेवफा क्यों नहीं कहता
क्योंकि मैं मुहब्बत के सिवा कुछ नहीं चाहता

-प्रभात

नदी, चांद, सितारे सब जुदा हो गए


नदी, चांद, सितारे सब जुदा हो गए
मैं चमकता रहा सनम तुम्हारे प्यार में



मुझमे दिखता रहा अक्स किसी और का
मेरे लिए वो पागल थी और मैं सनम के प्यार में

उसे छोड़ दिया मैंने जो मुझे चाहती बहुत थी
मुझे छोड़ दिया किसी ने अपने सनम के प्यार में

ये जो जुदाई का आलम है वर्षों बाद अब
मैं होश में हूँ अब भी मगर सनम तेरे प्यार में
.................

मैं गगन हूँ, चांद हूँ प्रभात हूँ बेबाक हूँ बहुत
तुम मुझे चाहने की कोशिश न करना

अंधेरा नहीं है जो ढक लेगा किसी दाग को
पत्थर हूँ, पहाड़ हूँ, पुकार हूँ, प्रकार हूँ बहुत
तुम मुझे जानने की कोशिश न करना
.................

मेरी चाहतों में शामिल है सिर्फ मेरा ही चेहरा
मैं जो भी चाहता हूँ बस सिर्फ अपने लिए

कोई मौका नहीं जब मैं खुद न याद आऊं
अब सब कुछ है, तुम्हें याद करूँगा किसलिए

ये जवानी नहीं जोश है मुहब्बत का शायराना
तराना अंतर्मन के और महफ़िल में हूँ अपने लिए

-प्रभात

होली का प्यारा लम्हा और तुम्हें ढेर सारा प्यार


होली का प्यारा लम्हा और तुम्हें ढेर सारा प्यार

...............

एक आरजू आज भी जिंदा है
हो वक़्त खूबसूरत इतना कि हम निकल पड़ें तुम्हारे करीब से बहुत
तुम छू न सको बस मुस्कुरा दो, लगे कि हम जिंदा हैं
एक आरजू...

तुम्हारी शरारतों से ज्यादा मोहब्बत कर ली थी मैंने शायद
इसलिये तुम जब कभी बेरंग से पानी डाल कर भाग जाते
तो मैं रंग जाता तुम्हारी फिजा में देर तक
तुम्हें पकड़ नहीं सका, लेकिन चाहत अब भी जिंदा है
एक आरजू...

खूबसूरत से लम्हें और हमको ढूंढ़ती हर शाम वो खामोशी
तुम्हारी नाजुक सी अंगुलियों के पकड़ने का अंदाज
और तुम्हारा चलते-चलते थोड़ा सा लुढ़क कर मेरे कंधों पर आ जाना
मैं अब सहारा तो नहीं हूँ, मगर कुछ तो है जो जिंदा है
एक आरजू...

-प्रभात

मन हुआ व्यथित अब आसमान में उड़ने को करता है


ये वेदना असीम भावों की आज कविता बन कर कुरेद रही है...

मन हुआ व्यथित अब आसमान में उड़ने को करता है
कभी हवा में उड़ने का तो कभी समुद्र में बहने का करता है
 
आतंकी करतूते हों या पुलिसिया कुप्रबंधन हो
एक-एक करके सबसे लड़ने का मन करता है

बहुत हुआ कुप्रचार नेताओं का, ताना बाना बुनने वालों का
लूट रहे जो भी दुनियां को, सबको लतियाने का मन करता है

चौकी है जो आग लगा दूँ, चौकीदारों को भगा दूं
हर किसी से लड़ना हो तो मन महाभारत करने का करता है

दंगों, चीख चीत्कार से कुंठित है अब हर नस नस जय हिंद
लौट चलूं किसी क्रांतिकारी राह पर मन बदलने का करता है

जोश, उमंग जज्बे सब मर गए हैं, एब्यूज ऑफ पावर के आगे
अब तो खूनी होली दीवाली खेलो इनसे ऐसा मन करता है

-प्रभात

जमाने की उलझनों में गीत नए गाए जाएं



जमाने की उलझनों में गीत नए गाए जाएं
बसंत को बसंत समझ प्रीत नए लाए जाएं
सेमलों का बाग हो या आम के बौर से नजदीकियाँ
हरे/भरे घास के पत्तों से भी धूल हटाए जाएं
मोहब्बतों में आसमां ही हो ऊपर ये जरूरी नहीं
जमीन पर हों जो करीब उनपर प्रेम जताए जाएं

-प्रभात