Tuesday 31 December 2013

गरीबी:- माँ, मैं और मेरी कहानी


     आप सभी को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं!!

      गरीबी:- माँ, मैं और मेरी कहानी 

रोटी नहीं है खिलाने को खाने की  मांग कब करूँ
अशिक्षा बेरोजगारी के आशियानें में नए भारत कि बात कब करूं
छुपती हुई देह और दुशाला में काप रही हूँ मैं
कोई चाहनें वाले कि खातिर जग रही हूँ  मैं
संस्कार में है मर जाना पर मांग नही
ऐसे ढलते सूरज की छाओं में छुप रही हूँ मैं
गरीबी की जंजीरों से निकल पाने की बात कब करूँ?

उसकी हकीकत को समझनें लगा हूँ मैं
दर्द और चीखने कि अस्रु में झूलने लगा हूँ मैं
बच्चों के बदन की पीड़ा को समझना आसान नहीं
पर उसकी माँ की आवाज पर चीखना लगा हूँ मैं 
असमानता की खायी में छुपने लगा हूँ मैं 
गरीबी की जंजीरों से निकल पाने की बात कब करूँ?

कहानियों सी लगती है पेपरों में उन्हें पढ़ना
कविताओं में देखकर भूल जाता हूँ मैं 
असली गरीबी तो सड़कों पर ही दिख जाती है
ताजमहल की सफेद दीवारों में नहीं
सितारों की दुनिया में फिल्मों में खोने लगा हूँ मैं
गरीबी की जंजीरों से निकल पाने की बात कब करूँ?

बीच सड़कों पर खेलते देखता हूँ बच्चों को मैं
कूड़े के ढेर में तिनका ढूंढ कर चुगते वे
दो रोटी के टुकड़े में हँसता खेलता देख उन्हें
मैं सहम सा जाता हूँ हर बार भूल जाता हूँ मैं 
सियासत की जंजीरों से निकल जानें की बात कब करूँ?
गरीबी की जंजीरों से निकल पाने की बात कब करूँ??

        -प्रभात 
  विनम्र आभार  

प्रेम और सहयोग


               आप सभी को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं!!

          
            

                       प्रेम और सहयोग

              प्रेम

तुम उम्मीद हो तुम ही मेरी जीत हो 
बचता कुछ नहीं सिवा तुम मेरे प्रीत हो
बंधती है आशाएं मंजर के गुथने से
टूटती है निराशाएं तबस्सुम की प्रीत से
करीब देखता हूँ बादलों के उमड़ने में
लगता भय सा है पर विश्वास ही हो
बरस के आते जब मेरे पास हो
तुम ही क्या एक हो जो मेरे साथ हो

       सहयोग

यूँ तो चादरों सी लिपटी हो पर्वतों के गोद में
निहारने को चल रही हो अप्सराओ के संग में
सहयोग के रास्ते में रात बंधती दिख रही उजाले में
ऊंची चोटियों से देखता हूँ सुबह का होना जब मैं
खिल जाता हूँ प्रकाश में उस अनुराग के साये में





               
प्रभात 
विनम्र आभार