Monday 23 September 2019

जी रहा हूँ जिंदगी अब जुल्फ के साये में


जी रहा हूँ जिंदगी अब जुल्फ के साये में
वो रात खुशनुमा शान थी अदाओं में

हसरतें मिट गईं, चाहत का इम्तहान हो गया
अजनबी बनकर रहे किस्सों में विहान हो गया
चल पड़ी है जिंदगी किसी और पेड़ की छांव में
लेकिन उसी का इंतजार है अभी अपनी राहों में

मैं बेपनाह मुहब्बत करता तो हूँ!


मुझे हर कहीं अगर उसका चेहरा नजर आए तो
समझो मैं बेपनाह मुहब्बत करता तो हूँ!
अश्कों को भी कब निकलना मालूम है शायद

मैं उसकी आँखों का अदब करता तो हूँ!

हर सूरत में किसी मूरत की तरह वो खड़ी है वो
जाग उसे देखने की कोशिश करता तो हूँ!
..................शायद नहीं लिख पाऊँगा आगे
क्योंकि हर वक्त उससे ही प्यार करता तो हूँ!
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मुझसे मिलना तुम्हें शायद अच्छा न लगे कभी
ये असलियत है पर मैं तड़पता तो हूँ...
एक प्यार एक जमीं एक आसमां है उम्र भर
जो भी जहां, खुदा को उसमे तरासता तो हूँ...
मंजिल पाना हकीकत से कोसो दूर है शायद
ये जानकर भी उसे शिद्दत से चाहता तो हूँ...
नोट- कृपया बिना पूछे कॉपी न करें।

'उसी के लिए'


'उसी के लिए'
धड़कता है दिल किसी किसी के लिए

प्यार हुआ भी है तो उसी के लिये

खुदा कितना चाहता है उसे और
मैं चाहता हूँ हर पल उसी के लिए
मेरी तरंगों की परिभाषा में है कुछ
जो गुम सा हुआ हूँ उसी के लिए
मिलना किसी का मुझे किसी सा लगे
अपनापन में हूँ बस उसी के लिए


मुझे मालूम है मोहब्बत में किसी की खुशामद करना


मुझे मालूम है मोहब्बत में किसी की खुशामद करना
और, गर मकसद न हो कुछ तो इबादत करना

मगर किसी की आंखों का तारा बनना नहीं मुझे
मुझे आता है आसमान का सितारा बनकर रहना

कोई अफसाना मुझसे लिपटकर खो गयी होगी


कोई अफसाना मुझसे लिपटकर खो गयी होगी
वो राहों में बंदिशें लिए रो रही होगी
जिंदा है मगर कहने को ही जब आंसू ही नहीं निकले
वो आयी थी शायद मेरी हो गयी होगी....|

बहुत खूबसूरत सा सवाल जो अब भी छोड़ा है उसने
वो आयी थी कभी मिलने, आयी है या आ रही होगी
इन्हीं उलझनों में बेचैन नयन कराहते तो होंगे
मगर आंखें बंद हैं अब वो तो सो गई होगी....|
जुल्फों के साये में उभरते अक्स मुझे दिख रहे हैं क्यों
ये मैं खुद से सवाल करूँ या वो कर रही होगी
बहुत देखा यकीनन किसी में ढूंढ़ना भी चाहा उसे
किसी ख्वाब की तरह सुबह ही ओझल हो गयी होगी....|
नोट: मेरी कोई भी पोस्ट बिना मुझे सूचित किये कॉपी न करें।

मोदी ने मंदी में एक ऐसा खेल खेला


मोदी ने मंदी में एक ऐसा खेल खेला
370 को हटाकर बहस ही बदल डाला

व्यापारी भी सोते सोते बोले मोदी है तो मुमकिन है
अधिकारी टिकटॉक पर बोले मोदी है तो मुमकिन है
रोजगार की ऐसी माया चारों ओर है निजीकरण का साया
रुपया पैसा सब गिर जाए लेकिन मोदी है तो मुमकिन है
मोदी ने मंदी में एक ऐसा खेल खेला
जंगल जंगल घूम के डिस्कवरी कर डाला!



हम इस तरह मुस्कुरा रहे हैं


हम इस तरह मुस्कुरा रहे हैं
कि गम है उसको भुला रहे हैं

हम चाहते हैं जिसे खुश रखना
वो हमीं को खूब रुला रहे हैं
जो भुलाए नहीं जाते ख्वाबों से
वो हमको ही अब भुला रहे हैं
माना कि चोट पहुँची तुम तलक
एहसास है तभी सहला रहे हैं
कदम-कदम पर मनाया है उन्हें
क्या दर्द है उन्हें जो इठला रहे हैं
कहता हूँ प्रेम से देखो एक बार
सोचो प्रभात क्यों चिल्ला रहे हैं
-प्रभात


मेरी खामोशी को तीर बना कर न रख देना


मेरी खामोशी को तीर बना कर न रख देना
मैं छलनी छलनी हो जाऊंगा आहिस्ता आहिस्ता
किसी की आन पर है कोई बात मगर
किसी की शान पर भी है कोई डगर
बेदर्दी के आलम में मजबूर बना कर न रख देना


कुछ कहूँ तो समझो यकीन कुछ न होगा

कुछ कहूँ तो समझो यकीन कुछ न होगा
बेजुबान समझो अब और कहना न होगा


मेरी तरफ देखो उम्रभर के लिए एक नजर
कुछ और क्या कहूँ कभी बिछड़ना न होगा

#प्रभात

Prabhat Prabhakar

जितना कि मीरा और कृष्ण का...


तुम मेरे पास न आना
और मैं तुम्हारे पास भी नहीं
दूर रहना इतना दूर जितना कि पृथ्वी और आकाश
इतना कि जितना कि मेरी प्यास और समंदर का पानी
इतना कि अपाहिज और शक्तिमान

इतना दूर कि माउंट और मारियाना
और तब मैं तड़पूंगा और एक दिन हार मान जाऊंगा
मैं इंसान बन जाऊंगा
फिर मैं कुछ न कहूंगा
लेकिन प्यार मेरा वही होगा
जितना कि भक्त और भगवान का
जितना कि मीरा और कृष्ण का...



वो खौफनाक मंजर


वो खौफनाक मंजर
वो तूफानी रातें
वो बेकरारी
सब कुछ भूल जाएगा
एक दिन आएगा
चिल्लाती रूहों में
संवेदनाओं का तड़पना
जागृत एहसासों का
टूटना और बिखरना
सनी यादों के साये में
पल-पल पलटना
सब कुछ सिमट जाएगा
एक दिन आएगा
जलते ख्वाबों की
लपटों में खुद को झोंकना
तस्वीरों के इर्द गिर्द जाना
और खुद से ओझल हो जाना
आत्मीयता के बहाने
टेढ़े मेढ़े अक्षरों को सहेजना
सब कुछ जल जायेगा
एक दिन आएगा
बोझ हल्के हैं अभी सहन हो जाएगा
इश्क़ अधर में है दफन हो जाएगा
वक्त की लपेटों से जागना चाहोगे
क्या पता सब कुछ सही हो जाएगा
लेकिन
पीड़ाओं के गट्ठर में खुद को न उठा लेना
मुस्कुराहटों को अपने अधर से न हटा देना
जिंदगी है, जान न देना
सब कुछ खत्म हो जाएगा
एक दिन आएगा
तस्वीर: गूगल साभार


बर्फ टूट रहा है


एकता में शक्ति है। इंसान वो इंसान कहाँ जो इसे टुकड़ों में हिन्दू मुसलमान करके देखता है।
भारत जिसे हम देख रहे हैं आलोचना कर रहे हैं। शायद अब वो इस कदर लगता भी है जब कुछ सामाजिक घटनाएं जिसके लिये हम खुद जिम्मेदार हैं वो तो है ही, कुछ को बढ़ावा देने के लिए राजनैतिक गतिविधियां भी जिम्मेदार हैं।

आज हम भक्त हैं मोदी के, राहुल के और केजरीवाल के लेकिन हम अपने सामाजिक उत्तरदायित्यों को न तो समझते हैं और न ही उनके लिये लड़ना चाहते हैं ना ही निष्पक्षता के साथ उनके भक्त बनना चाहते हैं। आज हर कोई टूट रहा है।
आम के पेड़ टूट रहे हैं
बरगद सूख रहा है
सड़कें टूट रही हैं
मुहल्ला टूट रहा है
बच्चा टूट रहा है
आदमी टूट रहा है
खिलौने टूट रहे हैं
मकान टूट रहे हैं
धर्म टूट रहा है
न्याय टूट रहा है
पैसा टूट रहा है
जिंदगी टूट रही है
अस्पताल टूट रहे हैं
महिलाएं टूट रही हैं
बर्फ टूट रहा है
और सब टूट कर पानी..........
अंत में पानी ही हो जाना है सब कुछ।
तस्वीर क्रेडिट - प्रभाकर

दिल्ली की सड़कों पर 1 बजे रात


दिल्ली की सड़कों पर 1 बजे रात
घर से बाहर कदम रखते ही
दिखता है गलियों में सन्नाटा और
इस सन्नाटे में प्रेमी और प्रेमकाओं की चीखें
कई अमानवीय मानव और कई मानवीय कुत्ते
गाड़ियों की बोनट पर बैठे हुए
झूमते हुए नशे में गिरते हुए आदमी
और खोखले, कमजोर, शरीरविहीन।

ट्रकों का सड़कों पर रौंदना तेज हो जाता है
और इस रौंदने में जीव निर्जीव हो जाता है
फुटपाथ पर बिना सांस लिए आदमियों का सोना
मरे हुए आदमी और उनकी तरह टायरों का रोना।
1 बजे रात लगता है आदमी, आदमी नहीं हैं
गुंडागर्दी और हैवानियत के आगे जिंदगी शर्मशार है...
क्योंकि फिर अगले सुबह किसी की चीख अखबारों में सिमट जाएगी
शाम होते ही कुछ मोमबत्तियां जल जाएंगी
और रात होते ही बुझ जाएंगी
और फिर 1 बज जाएगा फिर गलियों में फैलेगा सन्नाटा
तस्वीर: गूगल साभार

कुछ सुकून के पल


कुछ सुकून के पल
कुछ तरंगे जो हमेशा मुझे पास पहुंचा देती हैं
कुछ एहसासें जो बाहों को बाहों में फिसला देती हैं
कुछ तारों व सितारों का मंडल जिन्हें हम खामोश कर देते हैं
मैं कहता हूँ वही प्यार पराया आज तुम्हारे साथ है

कवियों की तरह पागल, आशिकों की तरह पागल
लेखकों की तरह पागल, खोजी की तरह पागल
मन ही मन हम दोनों ही पागल
कहीं तो कभी तो कोई तो होगा पागल
जो कहेगा एक पागल को दूसरा पागल मिल गया
चाँद अब भी दिखा है उसी बचपन में खाट के ऊपर
एक अंगुली तुम्हारी और एक मेरी
करधन को सीधा करते हुए नोचना तुम्हें
और फिर तुम्हारा गाल ऊपर करके बोलना
और फिर खिलखिलाना, जैसे उतरकर आ गया चाँद
चूमने हमें और हमें लगा कि बचपन साथ है

नींद जब टूट जाती है


बहुत दिन हुआ शायद लिखे मुझे कुछ नया।
लिखा भी तो कुछ रचनात्मक, सृजनात्मक और भावनात्मक न लिखा।
जो भी रहा शायद पन्ने पर न उतर सका।
आज लिख रहा हूँ फिर से तुम्हें क्योंकि तुम्हें लिखकर मैं इन सबको जाहिर कर सकता हूँ।

*******
नींद जब टूट जाती है, पंखे जब घूमने बंद हो जाते हैं
पार्क और मेट्रो की ओर देखता वही चेहरा याद आ जाता है
हां वही चेहरा जिसे देखने के लिए घंटों मैं इंतजार करता था
वही चेहरा जिसे न सामने पाने पर किसी से पूछना पड़ता था
और पूछने पर बहाना बनाना पड़ता था कि जैसे तुमसे मेरा कोई नाता ही न हो
इस तरह की विवशता कि जिसमें तुम्हारे सामने होने पर भी मैं आंखों से टाल देता था
या यूं कहें कि हमेशा तुम्हें इग्नोर ही करता था
लेकिन तुम्हारे जाने के बाद और उस समय भी जब इग्नोर करता था
बहुत देर तक गहराई से तुम्हारे आत्मा तक पहुंचने की कोशिश करता था
घंटों तुमसे बातें करता था और रह रह के खुद ही मन ही मन हंस लिया करता था
फिर तुमसे कुछ कहना भी चाहता था, लेकिन पहले तो कहा नहीं
और जब कहा तो तुमने सुनना ही बंद कर दिया
अविश्वास की खाई ही गहरी हुई और लगा कि तुम्हारे सामने खुद को सही तरीके से रख देने के बाद भी
कुछ कमियां रह गईं
इसलिए ही मेरे चेहरे के भाव को समझना क्या उसे खोल के रख देने के बाद भी
मैं तड़पता रहा और तुम उनसे कुछ जाहिर ही न कर सके
कहते हैं कि जहां मुझे मौन होना था वहां तुम मौन रहे
और जहां मुझे बोलना था वहां खुद ही बोल लिये
कुछ छूटा भी तो सामने आया कभी कुछ कहने
तो कह नहीं पाया ऐसा लगता है
लेकिन सच कहूं सब कह दिया
जिसे तुमने सुना शायद नहीं
या सुनकर रोज याद करती हो
मेरी तरह
शायद यही वजह है कि अब भी दिल तेजी से धड़क उठता है
चेहरे पर खामोशी आ जाती है
आंखों में एक काला सा धब्बा
और वही जाती हुई मेट्रो, पार्क और कैब
हो जाता है सब कुछ असामान्य
बस तुम्हारा नाम सुनकर
बस तुम्हें आंखों के सामने यादकर
बस यादकर!


नजर नहीं तो नजर किसी से कैसे मिल पाएगी

नजर नहीं तो नजर किसी से कैसे मिल पाएगी
बात जहां थी वर्षों पहले वहीं पर रह जायेगी

इतना मुश्किल काम नहीं जिसे कर न पाएं हम
हम अपने विश्वास पर जग जीत न ले आएं हम
...........

Monday 1 July 2019

मेरा लिखना, लिखना क्या अगर वह विवादित नहीं


मेरा लिखना, लिखना क्या अगर वह विवादित नहीं
सूरज को सूरज और चांद को चांद तो सब कहते हैं
अगर मैं सूरज को चांद न कहूँ तो इनको परिभाषित कौन करे

अगर मैं तुम्हारी तरह हाँ में हाँ मिलाकर उनसे कुछ न बोलूं
जिनके भक्त बन जाते हैं और अनुयायी पैमाने पर चलते हैं
तो मैं भी भक्त ही कहलाऊंगा, किसी और की भक्ति कैसे होगी

छुपना और सहना तो जीवन को चलाना है जैसे मौसमों का आना
मगर इनका बदलना न हो तो कैसे होगा सिद्ध की तुम भी जीवित हो
अगर हर कोई केवल नींद ही ले तो जागने वाला कैसे चिन्हित हो

मेरा कुछ भी कह देना हो सकता है हंसी का कारण बन जाए
मेरा आगे आना हो सकता है कुछ खोने का कारण बन जाए
लेकिन यह विमर्श बन जाए तो हो सकता है कोई प्रभात बन जाए

-प्रभात
तस्वीर-प्रतीकात्मक

उड़ उड़ कर गिरने से अच्छी कोई बात नहीं होती


उड़ उड़ कर गिरने से अच्छी कोई बात नहीं होती
बच्चे को गौरैया बनने में पूरी दिन रात न होती



मकान बने हैं बहुत यहां कोई रास नहीं आता
बस धरती पर जगह और खुला आसमां मिल जाता
तीखे कड़वे संवाद में रोना धोना चलता है
कर्कश आवाजों के साये में चुप रहना ही पड़ता है
बनी राह पर चलने से अच्छा कहीं पर रुक जाना है
राहों में राह बनाने से अच्छी कोई बात नहीं होती
बच्चे को गौरैया बनने में पूरी दिन रात न होती

-प्रभात

जब कोई पूछता है कहाँ गए वो


जब कोई पूछता है कहाँ गए वो.....? (1 के बाद 1 फिर भी मैं 1)


राह में पत्थर है मगर मालूम है मेरा बहना उसे
मैं नदी की तरह हूँ और मुझे रहना है वैसे

हौसलों को जगाकर बड़ी दूर तक चला आया
राह में मिलने वाले रोड़ों को छोड़ आया
थीं मुसीबतें बहुत जब रोकने की वजह बन गए वो
लेकिन बढ़ने के लिए आगे कुछ सीखा गए वो
मैं सीखते रहता हूँ और मुझे रहना है वैसे

तकदीर में वो नहीं शायद मेरे, ये भी जरूरी था
किसी का छोड़ कर मुझे जाना जरूरी था
तख्त पर सोने में वो आराम कहाँ है
मैं जमीन से जुड़ा हूँ और मुझे रहना है वैसे

मिलने की चाहत थी शुरू में चांद से हम दोनों की
गिले शिकवे बहुत थे मगर उम्मीदें थीं साथ रहने की
जब पहुंचने की बारी आई आसमां में हमको
टूट गई यारी और यार हौंसलों की
मगर मैं अकेले काफी हूँ और मुझे रहना है वैसे

-प्रभात

मैं तुमको बेवफा क्यों नहीं कहता



मैं तुमको बेवफा क्यों नहीं कहता
क्योंकि मैं मुहब्बत के सिवा कुछ नहीं चाहता

-प्रभात