Wednesday 29 June 2016

मजदूर

मजदूर 
-गूगल से साभार 

दौलत का मारा हूँ, बेचारा हूँ, मगर काम करता हूँ,
सर्दी हो या खूब गर्मी पसीने में ही आराम करता हूँ,
इंसा के लिए इंसानियत के कब्र को सलाम करता हूँ,
रोता हूँ जी कभी, तभी रोने वाली की फिकर होती है,
मेरे नाम पे हुए घोटाले से, हर रोज की जिकर होती हैं 
अभिनेता बने नेताओं ने मुझे अभिनय मे लूटा है जब-जब
मज़हब व मुझ पर सियासत में कतल होता है 
महंगाई पे मजरूह है मेरी भूखे बेटियों का आमाशय
मेरी सांसे रुकती है तेरे दिल्ली की उड़ान पर भय से ऐसे
पहुंचकर विदेश जो मरहम लगाते हो वहां की संसद पर
उनकी कुर्सियों का खर्च भी मेरे गाँव के पसीने से आता है 
अब तक जो वाहवाही लूटी है तुमने अपने वक्तव्यों से 
उसमें संसद निर्माता की आत्मा रोती है हर सदन पर
चुप रहता हूँ दाल की महंगाई पर और पानी खरीदता हूँ 
मैंने सींचा अरहर, इंसा के नाम का बीज हर बार बोता हूँ 
तुमने मारा है मुझे महगाई में और नफरतों के बीज बोकर
कभी प्याज, कभी पानी पर तो कभी गन्ने पर मर जाता हूँ
कितना बड़ा बेवकूफ हूँ मैं, फिर भी नेता तुम्हे ही चुनता हूँ
तभी हर रोज कतल होता है, शवों पर दलबदल होता है,
मेरी मासूमियत पर खरीदफरोख्त, देश के लिए बोझ हूँ,
मैं चुप हूँ, जिन्दा हूँ, गरीबी है, बेरोजगारी है, चोरी है
इससे मेरे गाँव,परिवार, देश की प्रगति में खलल होता है 
आजादी के लिये कुरबान शहीदों से दगल होता है,
तुम्हारा क्या सम्मान तुम देश का सम्मान ही नहीं करते
मैं भी कलंक हूँ, मगर रंगमंच का दर्शक, पृष्ठभूमि हूँ 
मैं गरीब हूँ, मगर रोटी के लिए मेहनत करके कमाता हूँ
-प्रभात


Saturday 25 June 2016

अच्छी बात किया कर।

अच्छी बात किया कर
-गूगल से साभार 

तू क़दमों से ही सही मेरा साथ दिया कर,
थोड़ा सा ही सही पर अच्छी बात किया कर।

कुछ कहने से अच्छा है चुप रह लिया कर,
कहना हो पहले तो, शब्द श्रृंगार किया कर।

जन्मों तक साथ रहे ऐसी बात किया कर,
तकरार की बातों को थोड़ा टाल दिया कर।

मेरे कुछ कहे बातों का सही इस्तेमाल कर,
गर पीछे छिपे राज का अहसास किया कर।

स्वाभाव है जो तेरा बनावट न आने दिया कर,
मुझको भी ऐसे बंधन से मुक्त कर दिया कर।

तेरे शौक है जो भले के जिद कर लिया कर,
हासिल न हो कुछ तो मैं से हम कर लिया कर।

किसी की बात पर बहकावे में यकीन न कर,
मेरी खामोशी में खुद को खामोश कर लिया कर।
-प्रभा


बबल गेम


 बबल गेम
-गूगल से साभार 
तस्वीरों में सिमटी नदियां भी कहल- कहल कर आज काले-काले से होने लगे हैं,
कांच के बने शीतल-शीतल महल भी टूट-टूट कर बिखरने लगे हैं।

कबूतर के कटोरे-कटोरे के जल के बूँद-बूँद को सूरज भी ऐसे पीने लगे हैं,
और इतनी त्रासदी में निकला कुए और टंकी का बूँद भी ज्ञान-विज्ञान में उलझ-उलझ कर खोने लगे हैं।

गलियों के कुत्ते और हांफ-हांफ के पत्तों-पत्तों से पानी निचोड़ने लगे है,
किसानों के फसल में खड़ी गरीब-गरीब की आत्मा भी झुलस-झुलस कर दम तोड़ने लगे हैं।

ऐसे प्रसंग के बीच स्मार्ट-स्मार्ट मनुष्य सब भूल-भूल मोबाइल में बबल गेम खेलने लगे हैं।
-प्रभात



मैं अपनी ही दुनिया भूल गया


मैं अपनी ही दुनिया भूल गया
-गूगल से साभार 
कभी चाँद देखा कभी सितारों को
मैं अपनी ही दुनिया भूल गया
मौसम को बदल डाला हमने मगर
मौसम से बदलना भूल गया
दुनिया भर में औरों ने बनाये है मार्ग
मैं खुद का द्वार बनाना भूल गया
बेहिसाब की है मेरी खुद की लगन
खुदा को हिसाब देना भूल गया
न पोखरा देखा न सावन का झूला
मैं गाँव की बारिश भूल गया
कभी चाँद देखा कभी सितारों को
मैं अपनी ही दुनिया भूल गया
-प्रभात