बारिश बहुत सामान्य सी बात है।
अच्छा लगता है
कागज के नाव में बचपन को देखना,
या झूलों पर बैठ कर भीगना हो।
हां, धान की रोपनी गीत गाते देखना भी
सबमें सुर भी है, ताल भी है।
मेढक के अलग सुर
बादलों के अलग सुर,
हां, बूंदों के भी सुर।
क्योंकि बारिश बहुत सामान्य सी बात है।
लेकिन, यही सुर शोर बन जाए तो
चाहे वह किसी का फिसलना हो,
किसी का डूबना हो,
हां, घर का भी।
बादल फटना हो तो भी
चिर्री लगना हो तो भी,
कुछ ढहना हो तो भी,
बारिश बहुत सामान्य सी बात है।
लेकिन, अब अखबारों में छपना
और मुआवजा देने वालों के लिए।
टहनियों का गिरना देखा ही होगा
लेकिन, पौधों का मरना?
हाँ, देखा होगा तो खेतों का डूबना भी
और उनका डूबकर खत्म हो जाना।
इनके मर्म को कौन जानता है?
जो निर्भर हैं कीट पतंगे,
पशु पक्षी यानी सभी जीव जंतु
हां, खिलते फूल भी।
बारिश बहुत सामान्य सी बात है।
मेरे लिए भीगने की आस में
बाढ़ में तैरती मछलियों के लिए भी,
पकौड़ों और भुट्टे खाने वालों के लिए भी,
हां, नौका विहार करते हुए जोड़ों के लिए भी,
लूह लगकर तप रहे लोगों के लिए भी।
लेकिन, डूबना, बरसना या चहकना
याद तो दिलाती हैं।
किसी के बिछड़ने की
हां किसी को खोने की,
किसी के जाने की।
लेकिन, बारिश बहुत सामान्य सी बात है
उनके लिए जो डूबना नहीं चाहते,
जो तैरना जानते हैं,
जो खुशनुमा माहौल को याद करते हैं।
हां, दूसरी ओर ऐसे लोग भी
जो याद ही नहीं रखना चाहते, भूल जाते हैं।
जिन्हें देखना या सुनना नहीं आता
जो राज करना जानते हैं,
और सबसे बड़ी बात यही कि जो संवेदनहीन हैं।
#प्रभात