एक अजनबी शहर जहां तुम मिले
या यूं कहें कि हम मिले
दिन रात ख्वाब बनकर जो चल रहे थे
अब ख्वाबों के बाद सुबह हो गई
वो रास्ते जो हमें देख रहे थे
आज पूछते हैं कि हम कहां गए।
टूटती चरमराती लकड़ियों की तरह
यादों का बार बार स्मरण हो जाना
जैसे महुए के फल का सुबह सुबह टपकना
वैसे ही लिबास पर गिरती हैं कुछ बूंदे
स्मृतियों की, हंसी खुशी वाले रास्तों की
बातों की बहती दरिया में बहते पलों की
वो पल जो हमारे गवाह बन कर जी रहे हैं
या यूं कहें कि जहां पर कभी कभी लौट जाते हैं
आज पूछते हैं कि तुम कहाँ गए।
लेकिन, हम बताते हैं कि हम आ गए हैं
बहुत दूर, जहां तुम्हारा अलग गांव ही नहीं है
बल्कि संसार है, और मेरा अलग संसार
रास्तों, कभी हम थे अगर तुम्हारे सामने
तो आज कोई और हमसफर होगा उसी राह पर
फिर क्या सबसे पूछोगे कि तुम कहाँ गए
चलना तो है ही तुम्हारी राह पर हर किसी को
फिर क्यों पूछते हो हम कहाँ गए, कहाँ गए।
कभी कभी खाली बैठने से कवित्व भाव बन कर दिल में उमड़ने लगता है, इसलिए लिख दिए,
लेकिन मैं कवि नहीं हूं।
#प्रभात
तस्वीरः गूगल साभार
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