Tuesday, 4 December 2018

ये समाज कहां जा रहा है


पीरियड्स में महिला सैनिटरी नैपकिन लेकर न जाये मंदिर तो ऐसे मंदिर में उन सभी का आना वर्जित हो जो गंदी मानसिकता वाले हों। यंत्र लगाने के लिए सरकार को आगे आना चाहिए जो यह मापे कि कौन कितना दूषित है।

सैनिटरी नैपकिन को मंदिर में ले जाना बड़े बड़े नारीवादियों को भी खूब गंवारा लगा। उन्हें हज़म नहीं हुआ तो रेहाना पर नारी विमर्श को ही अलग कर दिया। सवाल यह नहीं उठाया कि रेहाना सबरीमाला मंदिर की ओर क्यों और किस हालात में जा रही हैं। मंदिर में सैनिटरी नैपकिन को ले जाना सुनते ही उन्होंने उन्हें समाजसेवी मानने से इनकार ही नहीं किया बल्कि उनके नारी सशक्तीकरण की लड़ाई को बेबुनियाद मानते हुए उन्हें घिनौना हरकत करने वाली औरत मान लिया गया। उन्हें सेक्स रैकेट और अभद्र असभ्य मॉडल मान लिया गया।
दुख होता है जब उनकी सैनिटरी नैपकिन ले जाने पर महिलाओं ने ही उनका विरोध करना शुरू कर दिया। लोगों का ध्यान इससे हट गया यहां तक कि मीडिया ने भी इतनी भ्रांतियां फैला दी कि वास्तव में रेहाना गलत थीं और उन्होंने आस्था के साथ मजाक करने का काम किया है। यही चाहता था आस्था के नाम पर पुरुषवादी मानसिकता वाला समाज जो हमेशा समानता को दूर ले जाने का काम किया है।

मैं तो यही कहूंगा कि समाज और समाज के लोगों को वर्ग और धर्म से अलग इस पर विचार क्यों नहीं करना चाहिए कि मंदिर जाने का मतलब महिला या पुरुष वर्ग नहीं है। मंदिर सबके लिए है। चाहे वह सैनिटरी लेकर जाए या गंदे कपड़े। सबको अनुमति होनी चाहिए। क्या बीमार पुरुष मंदिर में प्रवेश नहीं करते?

क्या अशुध्द मन लेकर तथाकथित भक्त मंदिर में प्रवेश नहीं करते? अब वक्त आ गया है कि ऐसे भक्त और बाबा जिनकी मानिसकता ही दूषित हो चुकी है जो हमेशा धर्म के नाम पर लोगों के साथ खिलवाड़ करते हैं। उनका बहिष्कार करते हुए मुख्य धारा में समाज के साथ आना चाहिए जिसमें सबका समान रूप से भागीदारी हो....भगवान अयप्पा भी यही चाहते होंगे।
वक्त आ गया है कि रेहान और भी पैदा हों और अपनी आवाज बुलंद करें।

-प्रभात

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