Tuesday, 4 December 2018

जीवन का सच


कभी-कभी बात समझ आती है तो मैं सही सोचता हूँ। लेकिन यह तब होता है जब मैं मौत के करीब होता हूँ। सबसे परेशान होता हूँ। मैं ही मैं होता हूँ।
लेकिन बला टलते ही भूल जाता हूँ कि क्या सोचा था।


जब परेशानियां हावी होती हैं, सब हाय-हाय कर रहे होते हैं। मैं खाट पर होता हूँ। सोच रहा होता हूँ कि जिंदगी का सच क्या है। जीने का मकसद क्या है। कौन मित्र है कौन शत्रु है। कौन भाई है कौन परिवार है। हमने किसको क्या दिया है और हमने किससे क्या छीना है। तब समझ आता है कि जिंदगी का सच क्या है। अब लगता है कि हां अब सब कुछ बेकार है केवल खुशी और उस खुशी का कारण खुद के द्वारा किया गया कोई ऐसा अच्छा काम जिस पर आप खुद के ऊपर गर्व कर रहे होते हैं, वही होता है। पैसा, गाड़ी, जमीन सब बेकार सा लगता है।

यही एक ऐसा क्षण होता है जब लगता है कि अब बस जिंदगी अच्छी हो और हम स्वस्थ रहे और हम कुछ अच्छा करें। यही जीवन का सच है।

नोट: 'मैं' शब्द का मतलब मैं नहीं हूं। यह सब पर लागू होता है।

No comments:

Post a Comment

अगर आपको मेरा यह लेख/रचना पसंद आया हो तो कृपया आप यहाँ टिप्पणी स्वरुप अपनी बात हम तक जरुर पहुंचाए. आपके पास कोई सुझाव हो तो उसका भी स्वागत है. आपका सदा आभारी रहूँगा!