किस तरह डूब जाऊं मैं अब भी ख्यालों में कि जोखिम भी न हो और गीत
भी गाता रहूं...
बिछड़ जाऊं दूर भी रहूं लेकिन पास आता रहूं...
है क्या कोई जिंदगी जिसमें हमसफर भी न हो और तुम्हारे साथ चलता रहूं...
बिछड़ जाऊं दूर भी रहूं लेकिन पास आता रहूं...
है क्या कोई जिंदगी जिसमें हमसफर भी न हो और तुम्हारे साथ चलता रहूं...
(किंकर्तव्यविमूढ़। ऐसी पंक्तियां हैं, मैं नहीं)
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किस चीज का गुमान है मेरे दोस्त
सब किया धरा व्यर्थ जाएगा एक दिन
मंजिल पाने की दौड़ में अंधा न हो
सबका हिसाब करने आएगा एक दिन
किसकी खुशी मुकम्मल की है तुमने
किससे रिश्ते कैसे निभाये हैं तुमने
किसके कंधे पर बैठे रोटियों को पाने
किसकी तारीफ में तुमने भुला दिया उसे
किरदार किस्सों में बन कर घूम लो कहीं
असल किरदार निभाने आएगा एक दिन
इंसानियत मिलने तुमसे आएगा एक दिन
-प्रभात
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