Tuesday 4 December 2018

धारा 497, "दारू पीना अपराध नहीं है लेकिन मैं नहीं पीता।"


"दारू पीना अपराध नहीं है लेकिन मैं नहीं पीता।"
पतियों को चिंता सता रही है भाई कि पत्नी किसी और से संबंध बना लेगी और पत्नियों को तो पहले भी थी और अब तो क्या ही कहना।
भाई इतना ही विवाह जैसी पवित्र संस्था है तो उसे कायम रखने के लिए कानून की क्या जरूरत। कुछ भी कहें। पवित्रता तो जुड़ाव से आ जाती है और जुड़ाव तो विश्वास करने से होता है। विवाहेत्तर संबंधों को अनुचित बताने वाले वे भी हैं जो ऐसे संबंधों को पहले ही अपने मन से मान्यता दे चुके हैं।

मैं तो कहता हूँ डर है तो छोड़ दो प्रेम करना।
छोड़ दो अपने मन की बात कहना।
छोड़ दो संबंधों का मजाक बनाना।

कभी संबंध खूटे में बांधकर नहीं बनते। एलजीबीटी पहले भी था जब कानून नहीं था। प्रेम वहां भी होता है जहां आजादी नहीं होती और यहां तो हर पंछी क्या कण कण आजाद है। कानून से इतर भी कोई चीज होती है, खुद के आचार विचार और संहिता भी होते हैं।
लोग भूल जाते हैं कि आत्महत्या के उन कारणों देखने में जो इसकी वजह बन जाते हैं कि कानून की जकड़न और पति के खूंटे से बंधे होने की वजह से वो अपना संबंध कहीं और नहीं जोड़ पातीं।
समाज। हंसी आती है किस समाज की बात करते हैं भाई साब जिस समाज में सेक्स को लेकर दोनों एक दूसरे को फांसी में चढ़ाने की बात करते हैं चाहे वे पति हों या पत्नी।
जरूरी ये नहीं कि विवाहेत्तर संबंधों पर बहस करना। जरूरी ये है कि अपने संबंधों के आधार को प्रगाढ़ बनाने की और जरूरत ये भी है कि झूठे आरोप लगाने से बचें। बस आप आजाद रहें...
-प्रभात
तस्वीरः गूगल साभार


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