Tuesday 4 December 2018

कोई और आ गया, वो न आए कभी


महफ़िल सज रही है, नजरें मिल रही हैं
मेरी तरफ देखो, अब शायद तुम मुस्कुरा दो
-------------------------------

इस तरह वो मुझसे खफा थे, चले गए और फिर न आए कभी
मैं लौट कर आया बार-बार और वो मुस्कुरा भी ना पाए कभी

इस तरह आना जाना लगा रहा भीड़ में बहुत हुस्न वालों की
वो मेरा होने चले थे, मैं उनका हो गया वो तन्हा भी थे कभी

जो भी आया पास मेरे, साथ देने लगा उसका हमराज बनकर
वो उसी के साथ हो गए, कोई और आ गया, वो न आए कभी
-प्रभात

No comments:

Post a Comment

अगर आपको मेरा यह लेख/रचना पसंद आया हो तो कृपया आप यहाँ टिप्पणी स्वरुप अपनी बात हम तक जरुर पहुंचाए. आपके पास कोई सुझाव हो तो उसका भी स्वागत है. आपका सदा आभारी रहूँगा!