Tuesday, 4 December 2018

लड़के औऱ लड़कियों के खिलौने


बचपन का मेरा खिलौना टूट गया है आधा आधा हो गया है। आंगन में पड़ा था। नजर गई और बड़ी मुश्किल से इसे जोड़ कर अमरूद के पेड़ की टहनियों के बीच रखकर तस्वीर में कैद किया हूँ। इस खिलौने की खास विशेषता यह थी कि यह गुल्लक का काम करता था। लगता है इसके साथ ज्यादती भी पैसे निकालने के चक्कर में हुई तभी इनकी दशा ऐसी हो गई।

जैसा बचपन बीता उसी के आधार पर खड़े होकर जवानी को जी रहा हूँ। आज लड़कियां अगर गुड़िया से खेलती हैं तो लड़के भीम और डरावने बंदूक से खेलते हैं। लेकिन हमारे बचपन में घर में गुड़ियों के समतुल्य यह खेलने के लिए मिलता था। इस छोटे क्यूट लड़के से भी छोटा था तब इस साथी से मुलाकात उस एन पर हुई थी जब मैं किसी खास आमाशय की पीड़ा से कराह रहा था। मैं इसे देखता और फिर इसकी तरह सोचते सोचते चुप हो जाता।
मैं सोचता हूँ कि आज बच्चे इतने आगे निकल गए कि मां की गोद में बैठकर रिमोट से कार चलाते हैं और बंदूक की नाल से गोली निकालते हैं। विस्फोट करते हैं और स्मार्ट फोन के बटन से अनलॉक करके गेम खेलते हैं। टीवी में गंदी बात देखते हैं। मुझे तो पता भी नहीं भीम और क्या क्या खेलते हैं। किसी खतरनाक चैलेंज को पार करते हैं। हारते हैं रोते हैं। सिर फोड़ते हैं और फिर स्कूल में जाने लायक जब होते हैं तो जाकर दुष्कर्म भी कर जाते हैं।
मिलाजुलाकर हम यह कह सकते हैं कि बचपन में अपनाएं हथियारों को बच्चे अपनी चेतना में इस तरीके से संजों कर रखते हैं कि वे किसी भी हद तक जवानी के आग़ोश में उतार सकते हैं और उसके आधार और आड़ में किसी को भी चिल्ल्लाहट में तब्दील कर सकते हैं।
तो बच्चों का संस्कार और भावी पीढ़ियों के कर्णधार और सूत्रधार आप और हम यह क्यों नहीं सोच सकते कि आपके सोच में खिलौने स्मार्ट होने चाहिए या बच्चा स्मार्ट होना चाहिए। सोचिये और देखादेखी में लड़कियों को अगर गुड़ियाँ देने की हिम्मत रखते हैं तो लड़कों को भी गुड्डा देने की तो रख ही सकते हैं। बच्चा बच्चा को ही सीखा सकता है। हालांकि बहुत साथी हंसेंगे और लड़कियां भी जिद करेंगी कि हमें भी बंदूक ही चलाना है लड़का बनना है लेकिन आप उनकी हंसी को चुप करा सकते हैं। लड़कियां लड़कों सी तब नहीं बनेंगी जब उन्हें हथियार दे दिए जाएंगे उन्हें गालियां सिखाई जाएंगी, उन्हें बीयर और सिगरेट पकड़ा दिए जाएंगे और लेट नाईट पार्टी में शरीक होने के लिए कहा जायेगा। ये बराबरी नहीं है ये समाज का दूषित चेहरा है जो बराबरी के लिए लड़कों की गलत कदम को सही मानकर उनकी बराबरी करता देखा जाता है।
#प्रभात "कृष्ण"

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