Tuesday, 4 December 2018

फेसबुक पर आकर वो


फेसबुक पर आकर वो अब भी ढूंढ़ती है मुझे
मुझे इस तरह तन्हा करके उसको सूकून कहाँ




चाँद का दीदार करने को घंटों इंतजार करती है वो
इश्क़ का मुझसे इजहार कुछ इस तरह करती है वो

भीड़ में देखा उसको इस तरह बेचैन होते हुए
उसको मेरी सूरत देखने की ललक हो जैसे

मेरे माथे की लकीर को पास से पढ़ गई है वो
हर किसी के जिस्म पर खोजने से मिलती कहाँ



-प्रभात

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