Sunday, 22 April 2018

जा चली जा नदी की तरह


बुरे दिनों में सबसे करीब "मैं" होता है। अगर वह नहीं तो अच्छे दिनों की कल्पना करना बेकार है.
-google

जा चली जा नदी की तरह दूर समुंदर में कहीं
जा चली जा सीते अग्नि परीक्षा में अंदर धरा में सही
जा चली जा मेरी परछाई से दूर किसी लोक चाहे
पुकारोगी नहीं दुबारा मुझे अपने आन बान शान के आगे
मगर राम का क्या वो अग्नि के बाहर तड़पे थे, तड़पे हैं और तड़पते ही रहेंगे
त्याग और मर्यादा के चिन्ह पर सवाल थे, सवाल हुए और आगे होते ही रहेंगे
समाज में बदनाम पहले भी होते, बाद भी हुए और आगे होते ही रहेंगे......
-प्रभात


2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (23-04-2018) को ) "भूखी गइया कचरा चरती" (चर्चा अंक-2949) पर होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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