फेसबुक पर आकर वो अब भी ढूंढ़ती है मुझे
मुझे इस तरह तन्हा करके उसको सूकून कहाँ
चाँद का दीदार करने को घंटों इंतजार करती है वो
इश्क़ का मुझसे इजहार कुछ इस तरह करती है वो
इश्क़ का मुझसे इजहार कुछ इस तरह करती है वो
भीड़ में देखा उसको इस तरह बेचैन होते हुए
उसको मेरी सूरत देखने की ललक हो जैसे
उसको मेरी सूरत देखने की ललक हो जैसे
मेरे माथे की लकीर को पास से पढ़ गई है वो
हर किसी के जिस्म पर खोजने से मिलती कहाँ
हर किसी के जिस्म पर खोजने से मिलती कहाँ
No comments:
Post a Comment
अगर आपको मेरा यह लेख/रचना पसंद आया हो तो कृपया आप यहाँ टिप्पणी स्वरुप अपनी बात हम तक जरुर पहुंचाए. आपके पास कोई सुझाव हो तो उसका भी स्वागत है. आपका सदा आभारी रहूँगा!