Tuesday 3 April 2018

वेश्या हो तुम

घर से बाहर निकला हूँ आज
फेसबुक की दुनिया में
साहित्य को परखने
अपने तहखाने में पड़े प्रेमचंद, निर्मल के साहित्य को छोड़कर बहुत दूर
जो यातनाएं सह रही हैं किताबें
दीमक के कुतरने की
वायु प्रदूषण के रोगों की
शायद बार बार होने लगा ऐसा
जब वाई फाई से स्मार्ट फोन का गियर बदल लेता हूँ
रोजाना ही सुबह-सुबह बेड टी से पहले ही
लाईक की कुंजी लगाने जैसे ही पहुंचता हूँ
इंस्टाग्राम और हाइक और न जाने ऐसे
कितने चौराहे हैं जहाँ पढ़ने को रुकता हूँ
आज मन मलिन हो गया
जैसे कविताएं, गजल की पहली लाइन को कुछ हो गया
डिप्रेशन में कहानियां हैं तो पोर्न जैसी वीर गाथा
कविताओं के सुर ताल टीवी डॉट कॉम जैसे हो गए हैं
पीड़ित है तपेदिक से ही नहीं बल्कि 
एड्स हो गया है लिखने वालों को भी
केवल इसलिए क्योंकि
साहित्य की गलियों में घुसने के लिए दे रहे हैं
सरेआम गालियां, जो प्रोफाईल में कवि लिखते हैं अपने नाम के आगे
कहानीकार सेक्स करते हैं कहानियों में
औरतों की तस्वीरों से सजाकर अपने वाल पर
बटोरते हैं गूगल से पैसे
आखिर क्या कहें
क्या साहित्य वेश्यालय और लिखने वाला वेश्या से कम है नहीं न, तो ऐसे साहित्यकार इस चौराहे पर खड़े होकर 
धंधा ही तो कर रहे हैं
वेश्या हुए न तुम
तुम्हारे फॉलोवर्स तुम्हें खरीद रहे हैं, अश्लील कमेंट पर
लेकिन याद रखना वेश्या की मजबूरी तो समझ आती है
लेकिन इस युग की मजबूरी नहीं जो तुम्हें साहित्य की वेश्या बना दे।


-प्रभात 
तस्वीर: गूगल साभार



2 comments:

  1. एक एक शब्द ने अंतर्मन को प्रभावित कर दिया ...!

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    1. वैसे सच कहिए तो मैं कॉमेंट करना आप से ही सीख रहा हूँ। हर बार कुछ अलग। सबसे बड़ी बात ये कि आपकी उपस्थिति जरूर हो जाती है।आभार

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