Tuesday 15 January 2019

प्रिय रागिनी


प्रिय रागिनी,
कितने दिनों बाद फिर तुम्हारे नाम का जिक्र यहां कर रहा हूँ। ऐसा नहीं है कि भूल गया था तुम्हें लिखना, न ही ऐसा है कि कभी बहुत अधिक याद करने लगा था। तुम तो मेरी कहानियों की पात्र हो। तुम्हारा साथ तो जब मैं 10 साल का था तबसे है और जब तक रहूंगा तब तक रहेगा। कहानियां लिखी जाएं तब ही हो, यह भी जरूरी नहीं। हमेशा तुम्हारी संकल्पना सजीव और वास्तविक रूप में मेरे दिलो दिमाग तक छवि बनकर ठीक वैसे ही पहुंचती है जैसे तुम्हें जानने की कोशिश किसी-किसी में की। हालांकि वह भी अधूरी ही रह गई।

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तो पहले इन चार पंक्तियों को तुम्हारे नाम समर्पित करता हूँ
"छोटा है शहर, अपने आप को गुमनाम करता हूँ
हां, अब इस शहर को तुम्हारे नाम करता हूँ"
"लिखता हूँ पन्नों पर अब तुम्हारे नाम की सुर्खियां
हां, अब इस काम को तुम्हारे नाम करता हूँ"
पता नहीं कितना वक्त लगे, लेकिन एक कोशिश है ही तो पूरी भी होगी।
अब तुम्हारे नाम लिखी यह कविता
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माशूका हो तुम मेरी
तुम्हारे होने या न होने का कोई अर्थ नहीं,
बस तुम्हारे नाम का अर्थ है
वही रागिनी यानी नायिका मेरी
क्योंकि, मैं कविता हूँ समझो
बस लिखा जाता हूँ, पढ़ा जाता हूँ
समझा जाता हूँ, लेकिन
अधूरा रह जाता हूँ
इसलिये क्योंकि मैं कविता हूँ
अनुभव किया जा सकता हूँ
लेकिन, प्राप्त नहीं किया जा सकता।
मैं उस सीढ़ी पर बैठा हूँ जिसके पास तुम हो
हां तुम लेकिन, तुम हो भी!
यह संशय है।
अगर होते तो तुम नायिका नहीं होती
और कुछ भी आदर्श नहीं होता
रागिनी सुनो, यथार्थ क्या है...
धोखा और पत्नी यानी जो भौतिक हो
भौतिक हो यानी साथ हो
तुम इनमे से कुछ भी नहीं हो, प्यार हो
तुम्हें पाया नहीं जा सकता
तुम्हारा मिलना असम्भव है
क्योंकि तुम अगर गुलाब हो तो
तुम्हें देखा जा सकता है अनुभव किया जा सकता है
लेकिन छूते ही अस्तित्वविहीन हो जाओगी।
जिसे जो मिलता है वह धोखा
प्यार नहीं शादी, दोस्त नहीं पति
और जिसे दोस्त कहते हो वह दोस्त नहीं है रागिनी
दोस्त मतलब दोनों अस्त।
दोस्त मतलब न तुम और न मैं
दोस्त मतलब 'हम'
हम किसलिए किसी बंधन के लिए!
नहीं न।
तो किसलिए किसी स्वार्थ के लिए!
नहीं न।
तो किसलिए किसी इंसान के लिए!
नहीं न।
बस इसलिए क्योंकि तुम यानी रागिनी
वह शब्द जो अपने आप में इतना पूर्ण है
कि कुछ भी नहीं यहां तक कि कोई भी नहीं
समा सकता उसकी परिधि के अंदर।
जिसके सुनते ही उस माशूका का ख्याल आता है
जब अकेला होता हूँ हां, तब भी जब किसी के साथ होता हूँ
हाँ, तब भी जब मैं जितना सोचता हूँ उसके अर्थ के बारे में
वहां तक भी नहीं पहुँच पाता
और कह देता हूँ बड़े प्यार से कि
हां, तुम ही हो मेरी माशूका यानी रागिनी।
प्रभात

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