तस्वीरें-
दो फोटो और कहानी पूरी किताब की।
दो फोटो और कहानी पूरी किताब की।
मंदिर के ठीक सामने खड़ा हुआ बुद्धू और उसके उस जमाने के दो मित्र जब साथ थे। हर वक़्त अपने आप में वह इतिहास लिख रहा था। बुद्धू के भोलेपन और उसकी नादानियों का। उसके सस्ते सवालों का और उसकी तीखी बहसों का। इस बुद्धू के टीके पर एक निशान नैसर्गिक है ये उसे भी नहीं पता था, किसी ने बस यूं ही बता दिया था। उसके भोलेपन और उसकी सुंदरता का बखान करने से हर आदमी बेचारा ही समझेगा लेकिन उसके लिए यह सब झूठ ही था क्योंकि वह भोला नहीं एक ऐसा झोल का झोला था जिससे कोई और क्या उबरता वह खुद नहीं उबर सकता था। इस तस्वीर ने क्या कहा एक सवाल बन सकता है लेकिन उन सवालों का जवाब मैं भी नहीं दे सकता। यह बुद्धू से ही पूछिएगा और तब के बुद्धू से तो वह और अच्छा जवाब देगा। उसकी परछाई से जलने वाली अप्सरा और उसकी बातों पर कड़वा जहर उड़ेलने वाली प्रियतमा से क्या ही पूछिएगा!
उसके माथे की सिकन और उसके हड्डियों की
कमजोरी या फिर यूँ कहें उसकी बेनूर होने की पहेली सब कुछ तो वही है बुद्धू और उसकी
कमजोरी। वह खुद संवेदनहीन हो गया लेकिन किसी की संवेदना से तालमेल नहीं बिठा सका।
वह उससे दूर तो होता ही लेकिन पहले खुद से भी दूर हो गया। लेकिन वक्त के हिसाब से
बुद्धू के माथे की सिकन और बुद्धू की कमजोरी को पहचानना अब काफी मुश्किल है।
क्योंकि उसने इंसानियत के बीज बोते हुए कुछ पैमानियत के बीज भी डाल दिये, जो आज उग गये हैं जिसे देखने वाला हर शख्स
आज हैरान होता है कि आखिर इस बुद्धू को कैसे समझाया जाए और वह समझे भी कैसे,
नाम भी तो बुद्धू ही है....
और फिर कभी...
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