Saturday, 9 February 2019

वो हसीं शाम और तुम्हारा दस्तक


वो हसीं शाम और तुम्हारा दस्तक
शाम को आना और फिर यूँ ही हंस देना
एक अंजुरी होली का रंग फेंक देना
ऐसे ही जैसे धूप का पोखरा में सिमटना
और मेरे माथे पर लालिमा को फेंक देना
मैं अलसाया हुआ सा था मगर रंग गया
तुम्हारी उस लाल होठों की लाली में
और तुम्हारी बाहों में डूबने लगा
ऐसे ही जैसे सूरज का अस्त होना
और आसमां में डूबने लगना
तुम्हारे घुंघराले केशों के नीचे छिपना
तुम्हारे गाल के गड्ढे का बार-बार भरना
और मेरा उसे देख कर सिहरना
ऐसे ही जैसे चाँद का अंधेरे में उभरना
और काले मेघों का सिहर जाना
-बस यही प्यार है
प्रभात



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