Saturday, 9 February 2019

चाँद न आये कभी मगर तुम आओ


किस तरह तुमसे छिपकर एक अंजाम तक पहुंचूं
वहां तुम नजर आओ और कोई बीता लम्हा न आए
मेरी बेबसी को न देखो मगर इतना तो समझ लो
मैं चाहता हूँ चाँद न आये कभी मगर तुम आओ
हर उलझन की दीवारों को कैसे कहूँ कि गिर जाए
वो उलझन चली जाए और तुम्हारा मन पिघल जाए
तस्वीर में तुम्हारी चाहतों का जिक्र होता है बार-बार
रोता हूँ, मैं लौटता हूँ सहारे के लिए करीब हर बार
तुम्हारा आना-जाना तो सबकी नजर में भ्रम था यकीनन
मैं तो चाहता हूँ मेरा-तुम्हारा साथ यूँ ही बना रहे
कोई मुझसे पूछे कि तुम मेरे हो जाओ, मगर कैसे कहूँ
जिसे कहते हो लापता है पहले उससे पूछ के तो आओ
-प्रभात


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