सोचता है वो खोजता है वो, खुद को कहाँ पाता
है वो
खामोश लफ्ज हों या आलम हर बार सो जाता है वो
किसी का चेहरा हो कभी या किसी की आवाज
सुकून की नींद को हरदम ही तोड़ जाता है वो
शाम हो गयी हो या रंग बादलों में बन बिगड़ रहे हों
यादों का रंग बुलबुला बनकर बिखेर जाता है वो
गुलों का खिलना हो या बासंती भ्रमरों का मचलना
उसे देख कर सिहरना और फिर सब भूल जाता है वो
मस्ती में घूमना और फिर तरु की ओट में बैठ जाना
मां के आंचल में छिप उससे मिलने चला जाता है वो
मैं-मैं हूँ कभी या तुम-तुम हो, कभी नहीं बताता है
वो
कुछ भी कहीं हो, किसी ने कही हो 'हम' कह जाता है वो
-प्रभात
तस्वीर: गूगल आभार
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (11-02-2019) को "खेतों ने परिधान बसन्ती पहना है" (चर्चा अंक-3244) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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बसन्त पंचमी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Thanks
Deleteवाह !! बहुत ही सुन्दर शेर
ReplyDeleteसादर
Thanks
DeleteNice
ReplyDeleteThanks
DeleteThanks
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