सिर्फ तुम्हारे लिए,
एक खुला पत्र
नोट: इसका किसी भी प्रकार से किसी वस्तु, व्यक्ति, स्थान से प्रत्यक्ष
या परोक्ष रूप से कोई संबंध नहीं है।
तुमसे कोई रिश्ता नहीं। मन में असीम प्यार था कभी उड़ेल
नहीं सकता था। क्योंकि तुम्हारी सादगी और भोलेपन पर किसी और का नजराना था। मेरे लिए
तुम जैसे तब थे वैसे ही अब। कभी कभार लगता था कहूँ तुमसे कुछ। पता है नहीं सुनोगे लेकिन
फिर भी लिखना तो अपना काम है ना। इसके लिए किसी ओहदे की जरूरत थोड़ी न है न ही किसी
विरासत की। सबसे बड़ी बात न ही किसी रिश्ते का होना और वो भी तुमसे।
सुनो इस खुले पत्र को लिखने वाले पर यकीन न होना तुम्हारी
गलती नहीं है। इस पत्र में कहने वाली बात पर भी यकीन न होना पढ़ने वाले की गलती नहीं
है लेकिन जरूरी ये है कि बिना यकीन के भी कुछ लिखा जा सकता तो है। कितने अरमान थे तुमसे
मिलने की, बातें करने की। साथ
घूमने की, तुम्हें साथ लेकर
चलने की। तुम्हें हर वक़्त खुश देखने की, तुमसे सब कुछ कह देने की। मैं नदी
की तरह बहता चला जा रहा था मुझे पता था समुद्र में गिरना तो मेरी कला है। मैं गिरता
गया और तुम मुझे गिरते हुए देखते रहे। सब कुछ तुमने देख ही लिया। हमारे साथ बहे भी।
इन सबके बावजूद तुमने मुझे सोचा कि मैं कभी ताड़ के साथ गुजर कर बहता हूँ तो कभी आम
के साथ। तुमने ये भी सोचा कि पत्थर के साथ भी बहता हूँ और कोमल शैवाल के साथ भी। इसलिए
ही शायद तुमने मेरे साथ बहना छोड़ दिया। इसलिए तुमने कुछ सपनों को सपनों में ही बदल
दिया।
इमोशनल हो गए होगे। मत हो क्योंकि ये इमोशनलनामा नहीं
ये तो मैं सर्कस का पार्ट निभा रहा हूँ पहले की तरह।
तुम मुझे यूँ ही बहते हुए छोड़ सकते हो लेकिन मेरे भाव
का क्या, मेरे स्नेह का क्या।
मेरे ऊपर तुम्हारी नटखट सी बातों से तो कभी चोट लग भी जाये तो तुम्हें माफ कर दूंगा।
लेकिन इस तरह रूठकर खुद को अलग कर कहां तक ले जाओगे खुद को कभी वापिस लौट कर तो आओगे।
मैं समुद्र में जाता रहूंगा खूब विस्तार करूँगा, कहीं रुकूँगा नहीं। तुम भी ठहरना
छोड़कर बहते रहो। असीम शुभकामनाएं।
-प्रभात
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