Friday 23 March 2018

वसंत


क्यों वसंत! तुम जाने की तैयारी कर रहे हो? अभी तो आये थे और इतनी जल्दी....फिर जाने भी लगे। अभी तो मैं तुम्हें ढंग से निहार भी नहीं सका। बताओ मुझे किससे कहना है कि तुम यूँ ही ठहर जाओ। मान भी जाओ....क्या तुम्हें खुद पर गरूर है इसलिए क्योंकि सब तुम्हारा इंतजार करते हैं?
हां पक्षी जो आंगन में फुदक रहे थे, चहचहा रहे थे। जानवर जो पागुल करते हुए मुझे देख कर मुंह हिलाते हुए मेरे मुंह पर चुम्बन करने आ रहे थे। गिलहरियां चुलबुला रही थीं। तितलियां मेरे सिर के ऊपर उड़ रही थीं और भौरें गुंजायमान थे। सामने बोगेनवेलिया की लताओं का विस्तार लिए लाल लाल फूलनुमा पत्ते जो आकर्षित कर रहे थे। सरसों के पीले फूल लहलहा रहे थे। ये सब तुम अब लेकर जाने वाले हो।
हां मेरे हाथों में गुलाब का फूल जो था जिसे किसी मासूम सी लड़की ने मुझसे इश्क़ का इजहार करते हुए रखने के लिए दिया था। सूखने को है। हर गली-गली आंगन में जैसे चारों ओर फूल ही फूल हों। सब कुछ क्या तुम लेकर चले जाओगे।
मेरी विवशता का ख्याल नहीं। मैं देख नहीं पाया वसंत ठहर कर देखो जरा। जो सबने देखा वही हमने भी देखा लेकिन अब देखने के लिए नयनों की दृष्टि कमजोर सी हो गई है तो मुझे महसूस करने दो। मेरी भावनाओं की दृष्टि में सबके लबों पर हंसी और गुलाबी प्यार ही नहीं है बल्कि उनकी खुशबू से मयकश लफ्ज़ और उन अल्फाजों में इंसानियत की कद्र निहित है। ये सब भी तुम्हारे जाते ही खत्म हो जाएंगे।
प्रेम नफरत में बदल जायेगा? क्यों वसंत मोहब्बत पर कविताएं लिखने वाले दंगों पर कविताएं लिखने लग जाएंगे। प्रेम का इजहार करने वाले प्रेमी युगल विरह के संकट में आंखों से बारिश कराएंगे। ये हल्की सिहरन वाली हवाओं का रुख भी बदला होगा उसे थामने के लिए सिर पर पगड़ियां बांधनी होंगी। मेरी विवशता समझो वसंत। मुझे तुमसे मोहब्बत है और तुम हो कि मेरी मोहब्बत का तनिक भी ध्यान नहीं रख रहे...
मैं पूछता हूँ कि क्या यही मोहब्बत है?
पन्नों में लिखूं बस थोड़ी हकीकत है
लफ्जों में हैं बंदिशें, ख्वाबों की बस ताकत है
जरूरत भी है तुम्हारी और दर्द भी तुमसे है
क्या यही मोहब्बत है?
परछाइयों का आना जाना समंदर का डर जाना है
दरिया बनकर इस गुलशन में खुद ही भींग जाना है
बारिश में पानी की तरह आंखों में आँसू हैं
क्या यही मोहब्बत है?
-प्रभात  

2 comments:

  1. कहने को कुछ बचा ही नहीं..

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    1. फिर भी समुंदर बनना अभी बाकी है।

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