Friday, 23 March 2018

चिंता


कभी-कभी मैं सोचता हूँ कि प्रभु किस जमाने में मुझे भेज दिया है आपने। पहाड़ी खुंडा, कलम-दवात क्या कम थे। टेलीफोन-पीसीओ ये सब क्या कुछ सहेजने में विफल हुए जो मोबाइल व्हाट्सएप तक ईजाद हो गईं। इन सभी खोजों ने कितने रिश्तों को समेटने में कामयाबी पा ली। कितनी मर्यादाएं तार-तार हुईं और कितनी संवेदनहीनताओं ने जन्म लिया।

एक तरफ व्हाट्सएप ग्रुप में गुड मॉर्निंग और गुड नाईट और दूसरी तरफ मानहानि का फैसला कोर्ट में नहीं सुनाए जाते ये हमारी आंखों पर टच करके दिखाए जाते हैं। कयामत जब आएगी तो उसके कारण में क्या पता एप ही एक कारण न बन जाएं। कहीं ऐसा न हो कि एक एप आपको एक ऐसे लोकेशन पर पहुँचा दें जहाँ हम सबका विनाश हो जाए। ऐसा भी हो सकता है कि मैसेज टाइप करते हुए दिल के दौरों से सैकड़ों नवजात शहीद हो जाएं। यही कहते-कहते कि सच क्या है। शहीद इसलिए क्योंकि सभी अपनी भावनाओं को बचाने के लिए राष्ट्र के प्रति समर्पित दिखेंगे। सैकड़ों उलझनों में फंसे हुए व्यक्ति ने मैसेज रीड करने में देरी की तो उसके निकाले का फरमान भी आने लगेगा। अगर आपकी रीच व्यूज बढ़ाने में नहीं है तो आप डार्विन के सिद्धान्त के अनुसार आप प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएंगे और आपका इस संसार से विलगन सम्भव है।
एक मैसेज कबीर के इस संदेश को कि ऐसी वाणी बोलिये, मन का आपा खोय...खतरे में डाल सकते हैं और आप के जीने के लिए खतरा बन सकते हैं। सारी कार्यवाही ऑनलाइन होने से हम सब हवा में सफर कर रहे हैं। सारी भड़ास मैसेज में निकलते निकलते रिश्तों में तलाक तक पहुँच जा रहे हैं इस गति में और भी इजाफा होगा और एक दिन आएगा जब जीवन की सारी गतिविधियां मैसेज से संचालित होंगी। जन्म, वृद्धि, जनन, पढ़ाई जैसे भविष्य की सारी योजनाएं एप संचालित करेंगे और किसी एक कमांड से एक दिन जन्म की बजाय मृत्यु का कमांड मिलने लगेगा। वह दिन दूर नहीं जब इंसानों को अपनी पहचान इंसान के रूप में देनी होगी, लेकिन उसके पास कोई विकल्प नहीं रह जायेगा और वह किसी और पहचान में बदली होगी। मारपीट, मुकदमा और मर्यादाएं एप तक सीमित रहकर एक दूसरे का सिर फोड़ने लगी हैं।
पर्दे में रहकर, बिना किसी संवाद के, बिना किसी आवाज के, बिना किसी दिमाग का प्रयोग किये, बिना किसी वाद-विवाद के, बिना प्रत्यक्ष रूप से मिले संबंध जुड़ाव और विच्छेदन की कहानी से हर कोई रूबरू है ही लेकिन इसके पीछे समाज, संस्कृति उसके आदर्शों का हनन और आपराधिक, कुंठा ग्रस्त विचारों का निरंतर जन्म सच में शायद एक प्रलय की ओर चुनौती देता हुआ दिख रहा है। कहीं ऐसा न हो हम और हमारी पीढियां उसी के लिये जन्मीं हों।
#सच जो देखा
नोट: इस तस्वीर का मेरे लेख से कोई संबंध नहीं है।


4 comments:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन उन युवाओं से क्यों नहीं आज के युवा : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

    ReplyDelete
  2. आज स्मार्ट वो ही है जो स्मार्ट फोन पर अपनी दसो उंगलिया तेजी से चलाये, दिमाग भले ही कुंद हो जाये ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. बिल्कुल सही। धन्यवाद

      Delete

अगर आपको मेरा यह लेख/रचना पसंद आया हो तो कृपया आप यहाँ टिप्पणी स्वरुप अपनी बात हम तक जरुर पहुंचाए. आपके पास कोई सुझाव हो तो उसका भी स्वागत है. आपका सदा आभारी रहूँगा!