Friday, 23 March 2018

कुछ भी


सुना है तुम पत्रकार बन गए, परन्तु तुम्हें प्रेम के सिवा कुछ भी लिखते नहीं देखा।

हर वक्त ऐसे देखते हो जैसे दीपक की लौ बुझने वाली हो फिर भी पतंगे की तरह तुम गोलाई में घूमते रहते हो। क्यों इतना प्यार करते हो उस लौ से जो तुम्हें प्यार नहीं करती बल्कि तुम्हारे प्यार का इस्तेमाल करती है और तुम उस अंधेर नगरी में रोशनी में नहाए चकमका जाते हो।
रागिनी ने कहा तो बहुत कुछ लेकिन उसका मतलब ये कतई नहीं था कि तुम लिखो न..बल्कि उसका मतलब था कि जिंदगी में प्रेम की राजनीति भी समझ लो तो अच्छा होगा।
मैंने कहा रागिनी प्रेम खुद अपने आप में रहस्य है और एक ऐसा रहस्य जो बिना कुछ बोले भी इतना सब कुछ कह देता है कि आज तक राजनीति क्या, विज्ञान क्या, समाज क्या....हर एक चीज़ उसमें मसरूफ रहता है। अब तुम्हीं बताओ तुम क्या किसी रहस्य से कम हो? तुम मेरी जिंदगी में उस आयत की तरह हो जिसकी लंबाई या चौड़ाई कोई आंख तो पढ़ ही नहीं सकती देखने की बात छोड़ो। तुम आसमान की तरह फैली हुई हो, सागर की तरह बहती हो और रेगिस्तान की तरह झिलमिलाती हो और इतना ही नहीं तुम जीवन की हर एक मोड़ पर घड़ी की हर टिक-टिक पर नई परिभाषाएं बुनती हो।
तुम जीवन की हताशा हो, निराशा हो और हौसलों की बुनियाद भी तो। और जीवन की बचपना और हर एक मोड़ की गाथा भी तो।
मैंने जब ये सब कहा तो रागिनी बोली नहीं लेकिन आज लिखने के लिये मेरे पास इसलिये असीमित पेज पड़े हैं क्योंकि उसकी खामोशी को मैंने समझा था। अगर वह बोल देती तो मैं उन्हीं चंद शब्दों में सिमट जाता।



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