Friday, 23 March 2018

बस यूँ ही ...


एक रास्ता आज भी है बाकी
डर रहा हूँ, अकेले चलने से??
आंसुओं की चादर पर सोने से??
किताबों में धुँधले शब्द पाने से
बेचनियों में यादों को खोने से???
सुनों,
चाहता हूं मदिरा, पिला दे साकी 
एक रास्ता आज भी है बाकी......
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मत रोको छटपटाहट को, हंसने वालों को अभी हँस लेने दो
कल उन्हें अपनी हँसी भी याद आएगी और तुम्हारा दर्द भी।
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वक्त की करवट ने जमाना बदल दिया 
रात की नजरों ने कैसे मुँह फेर लिया
एक हकीकत ही है अब तुम्हारे सामने
बहुत मुश्किल है मनाना खुद को
कि तुम नहीं हो मेरे सामने............
...
वो चाँद का दीदार करें तो कैसे
जिंदगी को शायद मंजूर नहीं था
हौसलों को ताकत देने के सिवा
सफर में खुद को तनहा करें तो कैसे
...
अक्सर बेजुबान होते देखा है खुद को
किसी की परछाई भर सामने आ जाये तो
बस हवा की सरसराहट खींच ले जाती है
बहुत दूर .....इतना दूर कि..
शायद खो जाता हूँ तुम्हारा हाथ पकड़े भी
...
अक्स भी क्या कमाल की है खुदा
जिसकी तस्वीर लगाता हूँ दीवाल पर
वो नजर से ताल्लुकात ही नहीं रखते
एक इमेज है जिसे मैं डिलीट कर देता हूँ
लेकिन ये वायरस है जो दिल से नहीं जाता


-प्रभात 

2 comments:

  1. एक एक बात दिल के दर्द को और बढ़ाती है और दिल में कहीं गहरे उतर जाती है

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    1. संजय जी। आकर प्रतिक्रिया देने के लिए आभारी हूं।

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